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ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन तैतलिपुत्र को पोट्टिला अप्रिय लगने लगी तब पोट्टिला ने सुव्रता आर्या से कहा कि आपके पास कोई चूर्णयोग (स्तंभन आदि करने वाला), मंत्र योग, कामणयोग, हृदयोड्डायन (हृदय को हरने वाला), काया का आकर्षण करने वाला, आभियोगिक (पराभव करने वाला), वशीकरण, कौतुक कर्म, सौभाग्य प्रदान करने वाला स्नान, भूतिकर्म (मंत्रित की हुई भभूत का प्रयोग), कोई सेल, कंद, छाल, वेल, शिलिका (एक प्रकार की घास), गोली, औषध या भेषज आदि हो जिससे मैं तैतलिपुत्र को फिर से प्राप्त कर सकूं। 135 इसी प्रकार की बात सुकुमालिका दारिका ने सागरदारक को पुनः प्राप्त करने के लिए गोपालिका नामक बहुश्रुत आर्या से कही 1436
अन्य विश्वास
ज्ञाताधर्मकथांग में उपर्यक्त लौकिक विश्वासों के अलावा बलिकर्म (स्नान आदि के पश्चात् कुलदेवता की पूजा करना), कौतुक (काजल का टीका आदि लगाना) और मंगल (सरसों, दही, अक्षत और दूर्वा आदि का उपयोग) आदि के प्रसंग भी दृष्टिगोचर होते हैं
सामान्यतया ये सभी क्रियाएँ स्नान के बाद की जाती थीं । राजा श्रेणिक स्वप्न पाठकों को बुलाने से पूर्व 437, स्वप्न पाठक अपने घर से निकलने से पूर्व 138, दोहदपूर्ति के लिए जाती हुई धारिणी रानी 139, धन्य सार्थवाह जेल से मुक्त होने 440 और स्थविर के दर्शनार्थ जाते हुए 141, सार्थवाह पुत्र गणिका के यहाँ जाने से पूर्व 442 और मल्ली राजकुमारी छहों राजाओं को सबक सिखाने से पूर्व ये सभी क्रियाएँ करती हैं। 443 इसी प्रकार भोजन से पूर्व राजा जितशत्रु 144, दीक्षा के लिए जाते हुए पोट्टिला445, राजसभा में जाते हुए तैतलिपुत्र 146, द्रौपदी के पास जाने से पूर्व पद्मनाभ 147, दिग्भ्रान्त होने पर नौकावणिक 48 एवं चोरी के लिए जाने से पूर्व चिलात चोर449 द्वारा भी इन क्रियाओं को करने का उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार भुजा पर त्रुटित पहनने के पीछे भी दृष्टिदोष के निवारण का विश्वास था 1450
सामाजिक कुरीतियाँ और बुराइयाँ
आगमकालीन समाज में जहाँ अनेक अच्छाइयाँ थीं वहीं अनेक कुरीतियाँ भी विद्यमान थीं, जो समाज में विकृति उत्पन्न कर रही थी । प्रस्तुत ग्रन्थ में भी कुरीतियों का उल्लेख यत्र-तत्र देखने को मिलता है, जो इस प्रकार है
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