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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन ज्ञाताधर्मकथांग में केवल शरीर की ही नहीं अपितु वातावरण की साज-सज्जा पर्यावरण शुद्धि के प्रति भी लोगों की पूर्ण जागरूकता देखी जाती है। कपूर, लौंग, गोशीर्ष- चंदन, सरस, रक्तवंदन, सुगंधित फूल, काले अगर, श्रेष्ठ कुन्दरूक, तुरूष्क (लोभान) आदि से बने धूप, सुगंधित पुष्प व श्रेष्ठ सुगंध के चूर्ण से वातावरण को सौरभयुक्त किया जाता था। 353 इस प्रकार स्पष्ट है कि उस समय प्रसाधन की परम्परा थी और प्रसाधन का मुख्य उद्देश्य शरीर की कमनीयता एवं पर्यावरण शुद्धि में वृद्धि करना था । मनोरंजन मनोरंजन यानी मन का रंजन । ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित मनोरंजन के साधनों को दो भागों में बांटा जा सकता है- (i) क्रीड़ा या खेल (ii) उत्सवमहोत्सव । ज्ञाताधर्मकथांग में मनोरंजन के इन दोनों रूपों के विविध प्रसंग आते हैं, जिनका संक्षिप्त निदर्शन इस प्रकार है I. क्रीड़ा - ज्ञाताधर्मकथांग में अधोलिखित क्रीड़ाओं के प्रसंग आते हैंजलक्रीड़ा ज्ञाताधर्मकथांग में जलक्रीड़ा का उल्लेख एकाधिक स्थानों पर मिलता है । स्त्री और पुरुष दोनों इस क्रीड़ा द्वारा मनोरंजन करते थे । धारिणी देवी अपने दोहद की चिन्ता में जलक्रीड़ा का परित्याग करती है । 354 भद्रा सार्थवाही अपने दोहद की पूर्ति हेतु पुष्करिणी में जलक्रीड़ा करती हुई अपने मनोरथ को पूर्ण करती है । 355 नन्दापुष्करिणी में राजगृह के लोग जलक्रीड़ा करते थे1356 वनक्रीड़ा राजा एवं अन्य धनाढ्य व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ प्रकृति का आनन्द लेने एवं मनोरथों को पूर्ण करने के लिए वन / उद्यान में जाया करते थे। 357 सार्थवाह पुत्रों का देवदत्ता गणिका के साथ सुभूमिभाग में बने आलि नामक वृक्षों के गृहों, कदली गृहों, लता गृहों, आसन-गृहों, प्रेक्षण गृहों, मंडन गृहों, मोहन 142
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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