SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन ix. तौलिया- राजा श्रेणिक ने अपने शरीर को कोमल, सुगंधित और कषाय रंग से रंगे हुए वस्त्र (तौलिया) से पोंछा।285 इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर प्रतिमा को पोंछने का भी उल्लेख मिलता है।286 इससे स्पष्ट है कि उस समय शरीर आदि पोंछने के लिए तौलिया काम में लिया जाता था। साड़ी- ज्ञाताधर्मकथांग में मल्ली भगवती की माता प्रभावती ने हंस के चिह्न वाली साड़ी पहन रखी थी, जिसमें उन्होंने मल्ली अरहंत द्वारा त्यागे गए आभरणों को ग्रहण किया।87 इससे स्पष्ट होता है कि साड़ी पहनने का रिवाज था और संभवतः साड़ी के साथ पहने जाने वाले अन्य वस्त्रों का भी प्रचलन था। xi. अन्य वस्त्र- ज्ञाताधर्मकथांग में एक स्थान पर ऐसे वस्त्र का उल्लेख है जो नासिका के नि:श्वास से उड़ जाता था और घोड़े के मुख से निकलने वाले फेन से भी अधिक कोमल और हल्का था।288 सागरदत्त सार्थवाह ने सुकुमालिका के साथ द्रमक के विवाह के अवसर पर उसे हंसलक्षण वाले श्वेत वस्त्रों से सज्जित किया।289 निर्ग्रन्थ श्रमणियाँ जिस वस्त्र को उपयोग में लेती थी उसे 'संघाटी' कहा जाता था।290 भिखारी गली में पडे चिथड़ों को पहनते थे, जिन्हें चीरिक कहते थे और कुछेक चमड़े का टुकड़ा पहनकर भी अपना जीवन निर्वाह करते थे, जिसे चर्मखंडिक कहा जाता था। धारिणी देवी की शय्या मलक, नवत, कुशक्त, लिम्ब और सिंहकेसर नामक आस्तरणों से आच्छादित थी। उस पर लगी मसहरी का स्पर्श आजिनक (चर्म का वस्त्र), रूई, बूर नामक वनस्पति और मक्खन के समान नरम था।292 कोयतक (रूई या ऊन से बना), मसग (चमड़े से मढ़ा) और हंसगर्भ नामक श्वेत वस्त्रों का भी प्रचलन था।93 उपप्रधान (गद्दा), तकिया, आस्तरक (खोल)294, भद्रासन व जवनिका (पर्दा)296 आदि का उल्लेख भी मिलता है। युद्ध में जाते समय राजा कवच धारण करते थे।297 आभूषण शारीरिक सौन्दर्य की अभिवृद्धि के लिए स्त्री और पुरुष दोनों ही आभूषणों का प्रयोग करते थे। मनुष्य के अलग-अलग अंग के लिए अलग-अलग आभूषण थे। ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित आभूषणों का विवरण इस प्रकार है1. मुकुट- मुकुट राजाओं के राजत्व का द्योतक था। ज्ञाताधर्मकथांग में राजा 137
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy