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________________ ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन ix. मेघकुमार”, थावच्चापुत्र', श्रेणिक राजा78 और कृष्ण वासुदेव के एकाधिक पत्नियाँ थी, जो बहुपत्नी विवाह के उदाहरण हैं। x. द्रौपदी द्वारा स्वयंवर में पाँच पाण्डवों का वरण80 स्वयंवर विवाह का उदाहरण है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ज्ञाताधर्मकथांग काल में पाणिग्रहण संस्कार की विभिन्न प्रणालियाँ विद्यमान थी। 13. राज्याभिषेक संस्कार इस संस्कार में राजा अपने राज्य को पुत्र को सौंपकर स्वयं राजकार्य से निवृत्त हो जाता है। ज्ञााताधर्मकथांग में राजा श्रेणिक मेघकुमार को दीक्षा से पूर्व एक दिन के लिए राजगद्दी सौंपते हैं।181 इसी प्रकार महापद्मराजा अपने पुत्र पुण्डरीक को राज्य सौंपकर स्वयं दीक्षा अंगीकार कर लेते है।182 14. अभिनिष्क्रमण संस्कार प्रव्रजित होने के लिए घर से प्रस्थान को अभिनिष्क्रमण कहा जाता है। प्रव्रज्जा से पूर्व इस संस्कार को धूमधाम से मनाए जाने की परम्परा रही है। विशिष्ट चित्रों से चित्रित और हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविका पर दीक्षार्थी को बैठाकर अभिनिष्क्रमण क्रिया सम्पन्न की जाती है। ज्ञाताधर्मकथांग में मेघकुमार ने भगवान महावीर के पास183, थावच्चापुत्र ने अरिष्टनेमि के पास184, जितशत्रु आदि छहों राजाओं ने तीर्थंकर मल्ली के पास185, पाँच पाण्डवों ने धर्मघोष स्थविर के पास186, द्रौपदी से सुव्रता आर्या के पास, महापद्मराजा और कुंडरीक ने भी धर्मघोष स्थविर के पास188 प्रव्रज्जा अंगीकार की। 15. प्रव्रज्जा संस्कार असंयम से विरत हो संयमी जीवन का प्रारम्भ प्रव्रजा संस्कार से होता है। जैन प्रव्रजा संस्कार में पंचमुष्टि हुँचन, वंदना-नमस्कारपूर्वक भगवान से प्रव्रज्जा की प्रार्थनोपरान्त प्रव्रज्जा का अभिलाषी निवेदन करता है- भंते! आप मुझे प्रव्रजित करें। मेरा लोच करें। प्रतिलेखन आदि सिखावें। सूत्र और अर्थ प्रदान कर शिक्षा दें। ज्ञान आदि आचार एवं विनय आदि धर्म बताएँ। भगवान स्वयं प्रार्थी को प्रव्रजित कर संयमी जीवन की शिक्षा प्रदान करते हैं।189 तीर्थंकर स्वयं ही तीर्थ का प्रवर्तन करते हैं। अतः सिद्धों को वंदना करते हुए वे स्वयं ही लोचकर प्रव्रज्जा का संकल्प स्वीकार करते हैं । लुंचित केशों को 129
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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