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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
ज्ञाताधर्मकथांग में विभिन्न प्रकार के विवाहों के दृष्टान्त मिलते हैं, जो इस प्रकार हैंi. तैतलिपुत्र कलाद मूषिकादारक की पुत्री को पसन्द करता है और अपने
अभ्यन्तर स्थानीय पुरुषों को वहाँ भेजकर कन्या की मांग उसके मातापिता से करता है164 इसी प्रकार जिनदत्त सार्थवाह सुकुमालिका को पसन्द करके अपने पुत्र सागरदत्त के लिए उसकी मंगनी करता है। 65 इन दोनों अवसरों पर कन्या के लिए शुल्क देने की बात भी पूछी जाती है। इस प्रकार ये दोनों विवाह आर्ष विवाह कहे जा सकते हैं। ज्ञाताधर्मकथांग में सुंसुमा का चिलात पुत्र द्वारा बलपूर्वक अपहरण करने का उल्लेख मिलता है। हालांकि वह उससे विवाह नहीं कर सका,
लेकिन इस प्रकार का विवाह राक्षस विवाह कहा जाता है। iii. पूर्व संगतिक देव द्वारा द्रौपदी का अपहरण कर राजा पद्मनाथ के समक्ष
भोग के लिए प्रस्तुत करना'67, पैशाच विवाह का उदाहरण कहा जा
सकता है। iv. अपने ही वर्ण, जाति, समूह, प्रजाति और धर्म में विवाह करना, अन्तर्विवाह
कहा जाता है। मेघकुमार 68, थावच्चापुत्र69 द्रौपदी की शादी इसी विवाह के अंतर्गत आते हैं। ऊँचे वर्ण के पुरुष और निम्न वर्ण की स्त्री का विवाह अनुलोम विवाह कहा जाता है। तैतलिपुत्र अमात्य का स्वर्णकार की पुत्री पोट्टिला के साथ
विवाह। अनुलोम विवाह का प्रतीत है। vi. ऊँचे वर्ण की कन्या का निम्न वर्ण के वर के साथ विवाह प्रतिलोम
विवाह कहलाता है। सागरदत्त अपनी पुत्री सुकुमालिका का पुनःर्विवाह
एक भिखारी के साथ करता है, जो इस विवाह के अंतर्गत आता है। vii. ज्ञाताधर्मकथांग में धन्य सार्थवाह की भद्रानामक एक ही पत्नी थी।73,
धनपाल, धनदेव, धनगोप और धनरक्षित की भी एक-एक पत्नी ही थी।74 ऐसा विवाह 'एक-विवाह' यानी 'एक पत्नी-एक पति विवाह'
कहलाता है। viii. द्रौपदी पाँच पाण्डवों का वरण करती है।75, इसे बहुपति विवाह कहा
जाता है।
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