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________________ ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन सूचक होना चाहिए। गृह्य सूत्र के अनुसार नाम दो या चार अक्षरों का और व्यंजन से प्रारंभ होना चाहिए। बालकों के नाम में अक्षर सम और बालिकाओं के विषम संख्या आकारान्त में हों। यह नाम उच्चारण-सुखद और श्रुति-सुखद होना चाहिए।133 ____ आगमकालीन नाम व्यक्तित्व के किसी विशेष अंश को उजागर करने वाले होते थे। नाम की सार्थकता का शुभ संकल्प आदर्श के रूप में भी सामने रहता था। ज्ञाताधर्मकथांग में सम्प्रयोजन नामकरण के विविध दृष्टांत उपलब्ध हैं दोहद के आधार पर- गर्भवती की प्रशस्त या अप्रशस्त पदार्थ विशेष की तीव्र इच्छा दोहद कहलाता है। अकाल मेघ सम्बन्धी माता धारिणी के दोहद के आधार पर मेघकुमार34 और माता की फूलों की मालाओं की शय्या पर सोने की इच्छा के आधार पर मल्ली कुमारी135 नामकरण किए गए। देव द्वारा प्रदत्त पुत्र का नाम देवदत्त रखा गया।36 माता-पिता के नाम के आधार पर भी संतान का नाम रखा जाता था। यथा- थावच्चापुत्र'37, माकंदीपुत्र'38, कनकध्वज', द्रौपदी140 आदि। नगर के आधार पर भी नामकरण कर दिया जाता था, जैसे- तैतलिपुर नगर के नाम के आधार पर तैतलिपुत्र ।41 गुणानुरूप नाम- गुण के अनुरूप नामसंयोजना ज्ञाताधर्मकथांग में मिलती है। यथा- उज्झिता, भोगवती, रक्षिता, रोहिणी'42, जितशत्रु, सुबुद्धि143, धर्मरूचि अणगार। पूर्व जन्म पर आधारित नाम भी होते थे। जैसे- दर्दुर देव145, पोट्टिल देव ।।46 आदर्श के आधार पर- इस दृष्टि से नाम निर्धारण में आदर्श का संयोजन किया गया है जैसे- धनपाल, धनदेव, धनगोप, धनरक्षित'47, जिनपालित, जिनरक्षित 48। इस प्रकार अलग-अलग दृष्टियों से अलग-अलग नामों का उल्लेख ज्ञाताधर्मकथांग में देखा जा सकता है। 5. बहिर्यान या निष्क्रमण संस्कार संतान का जन्म के दो-चार माह बाद किसी दिन शुभवेला में पहली बार प्रसूतिगृह से बाहर ले जाने का नियम है, इसे बहिर्यान क्रिया कहते हैं। आजकल इसे मासवां कहा जाता है, जिसके अनुसार संतानोत्पत्ति के एक महीने या 40 125
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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