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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन सम्मान के लिए राजा द्रुपद सामने जाते हैं25 और इसी प्रकार पाण्डु राजा भी सभी राजाओं की ससम्मान अगवानी करते हैं।126 संस्कार
शरीर एवं वस्तुओं की सिद्धि और विकास के लिए समय-समय पर जो कर्म किए जाते हैं, उन्हें संस्कार कहते हैं। यह विशेष प्रकार का अदृष्ट फल उत्पन्न करने वाला कर्म होता है। शरीर के मुख्य सोलह संस्कार हैं। 17 जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त संस्कारों का विधान भारतीय संस्कृति में रहा है। ज्ञाताधर्मकथांग में संस्कारों से जुड़े उत्सवों का उल्लेख एकाधिक स्थानों पर मिलता है। जन्म, राज्याभिषेक, दीक्षा, विवाह व नामकरण आदि संस्कारों का विस्तृत विवेचन इस ग्रंथ में दृष्टिगोचर होता है-- 1. गर्भाधान संस्कार
यह संस्कार स्त्रियों के गर्भधारण के समय गर्भ की शुद्धि के लिए किया जाता है। ज्ञाताधर्मकथांग में इस संस्कार का उल्लेख नहीं मिलता है। 2. सीमनतोनयन संस्कार
इस संस्कार को गर्भाधान के बाद तीसरे महीने में सम्पादित किया जाता है। ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित धारिणीदेवी128 और भद्रासार्थवाही को गर्भाधान के तीसरे माह उत्पन्न होने वाले दोहद की तुलना इस संस्कार से कर सकते हैं, क्योंकि दोनों का उद्देश्य गर्भ संरक्षण और स्त्री को प्रसन्न रखना है। 3. जातकर्म संस्कार
हिन्दू संस्कारों के अनुसार ही ज्ञाताधर्मकथांग में जन्म के पहले दिन ही इस संस्कार को सम्पन्न करने का उल्लेख मिलता है। राजा श्रेणिक की पत्नी धारिणी देवी ने जब एक बालक को जन्म दिया तो जन्म के पहले दिन जातकर्म यानी नाल काटने का संस्कार सम्पादित किया गया।130 दूसरे दिन जागरिका31 (रात्रि जागरण) का आयोजन किया गया और तीसरे दिन सूर्य-चंद्र के दर्शन कराए गए।132 4. नामकरण संस्कार
संतान उत्पन्न होने के बारह दिनों के बाद नामकर्म संस्कार होता है। इस संस्कार की परम्परा प्राचीनकाल से चली आ रही है। मनु के अनुसार ब्राह्मण का नाम मंगलसूचक, क्षत्रिय का बलसूचक, वैश्य का धनसूचक, शूद्र का जुगुप्सा
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