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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन ज्ञाताधर्मकथांग के उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि पति-पत्नी के मधुर सम्बन्ध, माता-पिता और पुत्र का आदर्श सम्बन्ध, पितापुत्री का सम्बन्ध, भाई-भाई का सम्बन्ध, भाई-बहन का सम्बन्ध, श्वसुर-बहू का सम्बन्ध और अन्य पारिवारिक सम्बन्ध आदर्श रूप में परिलक्षित होते हैं। आचार-व्यवहार (आदर-सत्कार) आचार-व्यवहार भी किसी देश अथवा काल की संस्कृति को समझने का महत्वपूर्ण माध्यम है। ज्ञाताधर्मकथांगकालीन समाज को भी इसी आधार पर परखा जा सकता है। सभ्य-शिष्ट व्यवहार, मधुर संवाद, विनम्र-व्यवहार और उच्च शिष्टाचार उस युग की विशेषता थी। सामाजिक शिष्टाचार में अतिथि-सत्कार को अत्यधिक महत्व दिया जाता था। मिथिला के राजा कुम्भ ने अनेक स्थानों पर भोजनशालाएँ बनवाईं, जहाँ आहार आदि की व्यवस्था से उस देश के पथिकों को संतुष्ट किया जाता था।" राजगृह के नंदमणियार ने भी एक बहुत बड़ी भोजनशाला बनवाई, वहाँ पर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार बनता था, जिसका उपयोग ब्राह्मण, अतिथि, दरिद्र, श्रमण व भिखारी आदि करते थे। सभी को बड़े सत्कार के साथ भोजन करवाया जाता था। बड़ों का अभिवादन करना उस समय के शिष्टाचार का एक अंग था। ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसंधान के आधार पर कहा जा सकता है कि सिर झुकाकर विनयपूर्वक चरणों में नमस्कार करना, हाथ जोड़कर प्रणाम करना, मस्तक पर आवर्त करके, अंजलि करके सम्मान करना, चरणों में वंदना करना, जयजयकार करना, खड़े होकर मान-मर्यादा करना, आसन आदि देकर सम्मान करना', पैरों में गिरना, वंदना करना, नमस्कार करना", जय-विजय शब्दों से अभिनन्दन करना-बधाना, मान-सम्मान के लिए आसन से उठना, सत्कार करना, बैठने के लिए अपना आसन देना, तीन प्रदक्षिणा देना व दोनों हाथ जोड़कर दसों नखों को इकट्ठा करके मस्तक पर घुमाकर अंजलि जोड़कर विनयपूर्वक राजाज्ञा को स्वीकार करना आदि सम्मान प्रकट करने की शैलियाँ थी। ___ आलिंगन करने की उस समय परम्परा थी। आलिंगन वास्तविक सौहार्द का प्रतीक माना जाता था, जिस समय धन्य सार्थवाह को कारागार से निजात 122
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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