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________________ भी मैं सर्वप्रथम सत्यदृष्टा श्रमण भगवान महावीर के चरणों में श्रद्धाप्रणत हूँ जिन्होंने प्राणीमात्र को मुक्ति का पथ दिखलाया। समता विभूति आचार्य श्री नानेश एवं बहुश्रुत आचार्य श्री रामेश के चरणों में श्रद्धायुक्त नमन करती हूँ, जिन्होंने अध्यात्म का सम्यक् संबोध देकर मुझे सद्मार्ग पर आगे बढ़ने का संबल दिया। इसी शासन परम्परा के आशु कवि रत्न श्री गौतम मुनि जी को मेरा नमन, जिन्होंने अध्ययन के प्रति सदैव जागरूक रहने एवं प्रगति पथ पर आगे बढ़ने का प्रेरणा पाथेय प्रदान किया। जैन विश्व भारती संस्थान के प्रथम अनुशास्ता गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी, साध्वी प्रमुखा महाश्रमणी जी एवं समस्त साधुसाध्वियों एवं समणियों को वंदन, जिनका स्नेहिल आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन मेरे कार्य की गति-प्रगति में सहायक बना। ___ जैन विश्व भारती संस्थान की कुलपति श्रीमती सुधामही रघुनाथन व कुलसचिव डॉ. जगतराम भट्टाचार्या के प्रति कृतज्ञ हूँ जिनके आशीर्वाद से यह कार्य पूर्ण हुआ। मैंने अपना शोध प्रबन्ध जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग, जैन विश्व भारती संस्थान के सहायक आचार्य डॉ. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी के निर्देशन में प्रस्तुत किया। उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है या यूँ कहूं कि 'मिरा अनयन नयन बिनूं बानी' तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, गुरु रूप में उन्होंने जो स्नेहाशीर्वाद व प्ररेणा दी, वह चिरस्मरणीय है। मेरी कामना है कि उनका स्नेह-आशीर्वाद मुझे अनवरत मिलता रहे। प्रस्तुत कृति के लेखन में विशेष सहयोगी रहे प्रो. दयानन्द भार्गव, डॉ. अशोक कुमार जैन, डॉ. हरिशंकर पाण्डेय, डॉ. जिनेन्द्र कुमार जैन, डॉ. बच्छराज दुगड़, डॉ. सुरेश सिसोदिया, श्री अशोक जी चोरड़िया एवं डॉ. निर्मला जी चोरडिया को विशेष रूप से स्मरण करते हुए उनके प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ। प्रस्तुत ग्रंथ के प्रणयन में माता-पिता की वात्सल्यमयी स्वर्णिम महत्वाकांक्षाएँ अनिर्वचनीय हैं, जिन्होंने मेरे कोमल हृदय में अनवरत अध्ययन की प्रवृत्ति का बीजारोपण किया। मैं अपने पूज्य पिताजी व माताजी को श्रद्धानत होकर प्रणाम करती हूँ, जिनका आशीर्वाद इस कार्य की पूर्णता में सहायक रहा। आज डॉ. वीणा दीदी हमारे बीच नहीं रही लेकिन उनसे जुड़े घटनाक्रम मेरे मानस पटल
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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