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________________ की तरह है। जैन परंपरानुसार लोक कुल चौदह रज्जु प्रमाण है। सुमेरु पर्वत के तल के नीचे सात रज्जु प्रमाण अधोलोक और तल के ऊपर से सात रज्जु ऊर्ध्वलोक बताकर कुल चौदह रज्जु प्रमाण लोक बताया है। मध्यलोक की ऊँचाई को ऊर्ध्वलोक में शामिल किया है क्योंकि सात रज्जु प्रमाण के क्षेत्रफल में एक लाख चालीस योजन का क्षेत्रफल ठीक उसी प्रकार महत्त्व रखता है, जैसे पर्वत की तुलना में राई । रज्जु से तात्पर्य रस्सी नहीं है, अपितु तीन करोड़ इक्यासी लाख सत्ताईस हजार नौ सौ सत्तर मण वजन का एक भार और ऐसे हजार भार का अर्थात् अड़तीस अरब बारह करोड़ उन्यासी लाख सत्तर हजार मण वजन का एक लोहे का गोला छ: माह, छः दिन, छः प्रहर और छ: घड़ी में जितनी दूरी तय करे, उतनी दूरी को एक रज कहते हैं। लोक व अलोक की विशालता31 लोक की विशालता को बताने के लिए भगवान् महावीर ने यह रूपक प्रस्तुत किया है- 'किसी काल और किसी समय महर्द्धिक महासुख सम्पन्न छः देव, मन्दर (मेरु) पर्वत पर मन्दर की चूलिका के चारों दिशाओं में खड़े रहें और नीचे चार दिशाकुमारी देवियाँ चार बलिपिण्ड लेकर जम्बूद्वीप की (जगती पर) चारों दिशाओं में बाहर की ओर मुख करके खड़ी रहें। फिर वे चारों देवियाँ एक साथ चारों बलिपिण्डों को बाहर की ओर फेंकें। हे गौतम ! उसी समय उन देवों में से एक-एक (प्रत्येक) देव, चारों बलिपिण्डों को पृथ्वीतल पर पहुँचने से पहले ही शीघ्र ग्रहण करने में समर्थ हों, ऐसे उन देवों में से एक देव, हे गौतम! उस उत्कृष्ट दिव्य देवगति से पूर्व में जाए, एक देव दक्षिण दिशा की ओर जाए, इसी प्रकार एक देव पश्चिम की ओर, एक उत्तर की ओर एक देव ऊर्ध्व दिशा में और एक देव अधोदिशा में जाए। उसी दिन और उसी समय (एक गृहस्थ के) एक हजार वर्ष की आयु वाले एक बालक ने जन्म लिया तदनंतर उस बालक के माता-पिता चल बसे। (उतने समय में भी) वे देव, लोक का अन्त प्राप्त नहीं कर सकते। उसके बाद वह बालक भी आयुष्य पूर्ण होने पर कालधर्म को प्राप्त हो गया। उस बालक की हड्डी, मज्जा भी नष्ट हो गई, उस बालक की सात पीढ़ी तक का कुलवंश नष्ट हो गया तब भी वे देव, लोक का अन्त प्राप्त न कर सके। तत्पश्चात् उस बालक के नाम-गोत्र भी नष्ट हो गए, उतने समय तक (चलते रहने पर) भी वे देव, लोक का अन्त प्राप्त न कर सके।' इसी तरह अलोक की विशालता को भी रूपक द्वारा प्रस्तुत किया गया है। 72 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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