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________________ बहाकर क्रीड़ा करने लगते हैं। उन्हें ऐसा करते देखकर अन्य स्थविर महावीर भगवान् के पास आकर उनकी मुक्ति के संबंध में प्रश्न करते हैं। तब भगवान् महावीर उन्हें बताते हैं कि यह कुमार इसी भव में मोक्ष प्राप्त करेगा। तब सभी स्थविर उनके प्रति ग्लान भाव छोड़कर उनकी सेवाशुश्रूषा में लग जाते हैं। देवानन्दा- (9.33) भगवतीसूत्र के नवें शतक के 33वें अध्याय में देवानन्दा ब्राह्मणी का कथानक वर्णित हुआ है। देवानन्दा ब्राह्मणी कुण्डग्राम के निवासी ऋषभदत्त की पत्नी थी। भगवान् महावीर जब ब्राह्मणकुण्डग्राम में पधारते हैं तो देवानन्दा ऋषभदत्त के साथ उनके दर्शन के लिए जाती है। वहाँ भगवान् महावीर को देखकर अत्यन्त रोमांचित हो जाती है, उसकी मातृवत्सलता उमड़ पड़ती है तथा उसके नेत्र अश्रुओं से भीग जाते हैं। तब भगवान् महावीर यह स्वीकार करते हैं कि देवानन्दा ब्राह्मणी मेरी माता है अतः पूर्व-पुत्रस्नेहानुरागवश उनकी यह स्थिति हुई है। भगवान् महावीर के पास धर्मश्रवण से प्रभावित होकर ऋषभदत्त व देवानन्दा दोनों पति-पत्नी दीक्षा अंगीकार करते है और संयम व तप का परिपालन करते हुए अन्त में मोक्ष प्राप्त करते हैं। जयन्ती श्राविका- (12.2) जयन्ती श्राविका कौशाम्बी के राजा सहस्त्रानीक की पुत्री व राजा शतानीक की बहन थी। वैशाली के राजा चेटक की पुत्री मृगावती इनकी भाभी थी। जयन्ती भगवान् महावीर के साधुओं को शय्या (स्थान) देने के लिए प्रसिद्ध थी। ग्रंथ में उसे जीव-अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता बताया गया है। एक बार भगवान् महावीर के कौशाम्बी पधारने पर जयन्ती अपनी भौजाई मृगावती के साथ उनके दर्शन करने जाती है, वहाँ भगवान महावीर से अनेक प्रश्न करती है। भगवान महावीर द्वारा अनेकान्त शैली में उनका समाधान प्रस्तुत किया गया। भगवान् महावीर से अपने प्रश्नों के उत्तर प्राप्त कर जयन्ती अत्यन्त प्रभावित व संतुष्ट होती है। अन्त में श्रमण दीक्षा अंगीकार कर संयम व तप की साधना कर मुक्ति प्राप्त करती है। इसके अतिरिक्त सोमिल ब्राह्मण (18.10), मुद्गल परिव्राजक (11.12), कालास्यवेशी (1.9) आदि के प्रकरण भी कथानक शैली में वर्णित हैं। शतकों के अनुसार विषयवस्तु भगवतीसूत्र में 41 शतक हैं तथा प्रत्येक शतक अनेक उद्देशकों में विभक्त है। इन शतकों में वर्णित विषय बिखरे हुए हैं। कोई भी विषय किसी भी शतक में व्यवस्थित ढंग से निरूपित नहीं है। विस्तारभय से सभी 41 शतकों की विषयवस्तु 48 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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