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11. व्या. सू. 15.1 12. सूत्रकृतांग, द्वितीय श्रुतस्कन्ध, सम्पा. मुनि मधुकर, 7.873, पृ. 216 13. सूत्रकृतांग, मुनि मधुकर, 1.4.6, पृ. 92 14. 'धुवे णितिए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे'-व्या. सू. 9.33.101 15. वही, 7.2.1-35 16. स्थानांग, सम्पा. मुनि मधुकर, 1.2, पृ. 3
'जीवे ताव नियमा जीवे, जीवे वि नियमा जीवे।'- व्या. सू. 6.10.2 18. ___ 'जदत्थि णं लोगे तं सव्वं दुपओआरं, तं जहा जीवच्चेव अजीवच्चेव।'- स्थानांग, सम्पा.
मुनि मधुकर, 2.1.1, पृ. 24 19. वही, 3.2.140, पृ. 120
व्या. सू., 11.10.3-6 21. 'पंचविह सज्झाए पण्णत्ते, तं जहा वायणा, पुच्छणा,
परियट्टणा, अणुप्पेहा, धम्मकहा'-स्थानांग, सम्पा. मुनि मधुकर, 5.3.220, पृ. 525 'वायणा, पडिपुच्छना परियऽणा अणुप्पेहा धम्मकहा'-व्या. सू., 25.7.236
शास्त्री, देवेन्द्र मुनि, जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा, पृ. 104 24. समवायांगसूत्र, सम्पा. मुनि मधुकर 1.7-8, पृ. 5
___ 'दव्वओ णं एगे लोए सअंते'- व्या. सू. 2.1.24 26. समवायांग, सम्पा. मुनि मधुकर, 31, पृ. 15
वही, 201, पृ.91 व्या. सू. 15.1.21
समवायांगसूत्र, सम्पा. मुनि मधुकर, प्रस्तावना, पृ. 60-86 30. ज्ञाताधर्मकथा, सम्पा. मुनि मधुकर, 1.17-160 31. व्या. सू. 11.11 32. वही, 11.11.44
व्या. सू. 12.2 34. उत्तराध्ययन, अध्याय 1 35. व्या. सू. 25.7.219
उत्तराध्ययन, 2.1-46 व्या. सू. 8.8.23-34 'धम्मो अधम्मो आगासं कालो पुग्गल-जन्तवो।
एस लोगो ति पन्नत्तो जिणेहि वरदंसिहिं ।।' उत्तराध्ययन, 28.7 39. पंचत्थिकाया, एस णं एवतिए लोए त्ति पवुच्चइ,
तं जहा-धम्मऽत्थिकाए, अधम्मऽत्थिकाए, जाव पोग्गलत्थिकाए।' व्या. सू. 13.4.23 40. उत्तराध्ययन, 4.12 41. व्या. सू. 1.9.18
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भगवतीसूत्र व अन्य आगम ग्रंथ
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