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________________ में नष्ट हो जाती है। इस प्रकार अक्रिय व्यक्ति अन्तक्रिया रूप मुक्ति को प्राप्त कर लेता है। अक्रिया का अन्तिम फल सिद्धि है। 2 मुक्ति जीव का चरम लक्ष्य मुक्ति प्राप्ति है। सर्वार्थसिद्धि में आचार्य पूज्यपाद ने सम्पूर्ण कर्म के वियोग को मोक्ष कहा है - सर्वकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः - (1.1.8 पृ. 6) दूसरे शब्दों में बंधन मुक्ति ही मोक्ष है। बंधन मुक्ति तभी संभव है जब नये कर्मों का आस्रव न हो तथा पुराने कर्मों की निर्जरा हो। भगवतीसूत्र में संवर व तप को मुक्ति का साधन माना है। संवर से कर्मों का अनास्रवत्व होता है और तप से कर्मों का क्षय। मोक्ष प्राप्ति में साधक कारणों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि संवेग, निर्वेद, गुरुसाधर्मिक-शुश्रूषा, आलोचना, निन्दना, गर्हणा, क्षमापना, श्रुतसहायता, व्युपशमना, भाव में अप्रतिबद्धता, विनिवर्त्तना, विविक्त-शयनासनसेवनता, श्रोत्रेन्द्रिय आदि पाँच इन्द्रिय संवर, योग-प्रत्याख्यान, शरीर-प्रत्याख्यान, कषाय-प्रत्याख्यान, सम्भोग-प्रत्याख्यान, उपधि-प्रत्याख्यान, भक्त-प्रत्याख्यान, क्षमा, विरागता, भावसत्य, योगसत्य, करणसत्य, मन:समन्वाहरण, वचन-समन्वाहरण, काय-समन्वाहरण, क्रोध-विवेक से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य-विवेक, ज्ञान-सम्पन्नता, चारित्र-सम्पन्नता, वेदना-अध्यासनता और मारणान्तिक-अध्यासनता इन 49 पदों के आचरण का अन्तिम फल मोक्ष है। कर्महीन सिद्ध जीवों में गति की प्ररूपणा करते हुए कहा गया है कि अकर्मक जीव की नि:संगता, नीरागता, गतिपरिणाम, बन्धन-छेद, निरिन्धनता (कर्मरूपी ईंधन से मुक्त) व पूर्व प्रयोग से विमुक्त होने के कारण सिद्धों में ऊर्ध्वगति होती है । सिद्धों में ऊर्ध्वगति को तुम्बे, मटर आदि सूखी फली के बीज, ईंधन के धुएं तथा धनुष से छूटे बाण आदि विभिन्न उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया गया है। सिद्ध के स्वरूप का विस्तृत विवेचन जीव के भेद-प्रभेद के अन्तर्गत किया जा चुका है। कर्म प्रकृति कर्म प्रकृतियाँ आठ मानी गई हैं। 1. ज्ञानावरणीय, 2. दर्शनावरणीय, 3. वेदनीय, 4. मोहनीय, 5. नाम, 6. आयु, 7. गोत्र, 8. अंतराय भगवतीसूत्र में आठ कर्मप्रकृतियों के नामों का उल्लेख करके प्रज्ञापनासूत्र के तेईसवें कर्मप्रकृति' अध्ययन के प्रथम उद्देशक का निर्देश किया गया है। प्रज्ञापनासूत्र में इनका विस्तृत विवेचन है। 290 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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