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________________ सेवन का त्याग एवं सीमा में मर्यादित वस्तु से ज्यादा वस्तु का सेवन नहीं करना देशावकाशित है। वस्तुतः देशावकाशिक व्रत में न केवल दिग्व्रत की मर्यादा संक्षिप्त की जाती है अपितु अणुव्रतों का भी संक्षिप्तिकरण हो जाता है। पौषध 1 पौषध का अर्थ है अपने निकट रहना । अर्थात् परस्वरूप से हटकर स्वस्वरूप में स्थित होना पौषध व्रत है । पौषध का शाब्दिक अर्थ है, पोषना अर्थात् तृप्त होना । प्रतिदिन भोजन द्वारा हम शरीर को तृप्त करते हैं । इस व्रत के पालन द्वारा श्रावक दिनभर उपासनागृह में धर्मसाधना में रत होकर, आत्मा के निकट पहुँचकर उसे तृप्त करते हैं। श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र में एक दिन - रात के लिए चारों प्रकार के आहार का त्याग, अब्रह्मचर्यसेवन, मणि, सुवर्ण, पुष्पमाला, सुगन्धितचूर्ण, तलवार, हल, मूसल आदि सावद्ययोगों के त्याग को पौषधोपवास माना है। आवश्यकवृत्ति" में पौषध के चार भेद बताये गये हैं; 1. आहारपौषध, 2. शरीरपौषध, 3. ब्रह्मचर्यपौषध, 4. अव्यापारपौषध । आहारपौषध - चतुर्विध आहार का त्याग करके धर्मध्यान में अधिक समय व्यतीत करना । शरीरपौषध - स्नान, विलेपन, उबटन, पुष्पगंध, आभूषण आदि का त्याग करके शरीर को धर्माचरण में लगाना । ब्रह्मचर्यपौषध- सभी प्रकार के मैथुन का त्याग कर ब्रह्मरूप होकर आत्मा में रमण करना ब्रह्मचर्य पौषध है । अव्यापारपौषध- आजीविका के व्यवसाय तथा शस्त्र आदि का त्याग कर सभी सावद्य प्रवृत्तियों को छोड़ना अव्यापारपौषध है । भगवतीसूत्र में पौषध के दो प्रकारों का उल्लेख है1. आहारसेवनयुक्तसामूहिकपौषध, 2. चतुर्विध आहारत्यागपौषध आहारसेवनयुक्तसामूहिक पौषध7 - शंख श्रमणोपासक व अन्य श्रमणोपासकों द्वारा साथ मिलकर चतुर्विध आहार तैयार करवाकर उसका आस्वादन करते हुए व एक दूसरे को देते हुए पाक्षिक पौषध का अहोरात्र पालन करने की योजना बनाई गई। बाद में शंख श्रावक को छोड़कर अन्य श्रमणोपासकों द्वारा इसी प्रकार का सामूहिक पौषध किया गया। इसे वर्तमान में देशपौषध, देशावकाशिकव्रत रूप पौषध, दयाव्रत या छकाया भी कहते हैं 48 268 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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