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________________ का उपभोग-परिभोग नहीं करूँगा। इसके लिए शास्त्रों में विभिन्न पदार्थों की सूची दी है। उपासकदशांग37 में 21 पदार्थों की मर्यादा निश्चित की गई है। श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र में 26 पदार्थों की मर्यादा निश्चित की गई है। ___ अनर्थदण्डविरमणव्रत- उपासकदशांग' में चार प्रकार के अनर्थदण्ड बताये गये हैं; अपध्यान, प्रमाद, हिंसाकारी शस्त्र प्रदान तथा पापकर्म का उपदेश । इन चारों प्रकार के अनर्थदण्डों के त्याग की मर्यादा निश्चित करना अनर्थदण्डविरमण व्रत माना है। इस व्रत के अन्तर्गत श्रावक आर्तध्यान, बिना प्रयोजन हिंसा के कार्य, हिंसात्मक शस्त्रों, पापकर्म उपदेश एवं कुमार्ग की ओर प्रेरित करने वाले साधनों को त्यागकर जीवन को हिंसा से बचाकर सदाचारयुक्त बनाता है। शिक्षाव्रत शिक्षा से तात्पर्य अभ्यास से है। श्रावक को जिन व्रतों का पुनः पुनः अभ्यास करना चाहिये वे शिक्षाव्रत कहलाते हैं। शिक्षाव्रत के लिए भगवतीसूत्र में शीलव्रत शब्द का प्रयोग हुआ है। आचार्य अमृतचन्द्र ने शीलव्रत की महत्ता को स्पष्ट करते हुए कहा है कि जैसे परकोटे नगर की रक्षा करते हैं, वैसे ही शीलव्रत अणुव्रतों की रक्षा करते हैं। जैनग्रंथों में इसके लिए शिक्षाव्रत का प्रयोग हुआ है। अणुव्रत व गुणव्रत जीवन में एक बार ग्रहण किये जाते हैं, किन्तु शिक्षाव्रत कुछ समय के लिए बार-बार ग्रहण किये जाते हैं। शिक्षाव्रत चार माने गये हैं; 1. सामायिक, 2. देशावकाशिक, 3. पौषधोपवास, 4. अतिथिसंविभाग। सामायिक व्रत- मन, वचन व काया द्वारा आत्मा में रमण करने की प्रक्रिया सामायिक है। भगवतीसूत्र में तो अभेदोपचार से आत्मा को ही सामायिक कहा है। रत्नकरण्डकश्रावकाचार आदि ग्रंथों में एक निश्चित समय तक हिंसादि पाँचों पापों का तीन करण व तीन योग से त्याग करने को सामायिक कहा है। सामायिक की महत्ता को बताते हुए कहा गया है कि सामायिक के अभाव में चाहे कितने ही तपश्चरण किये जाये, कष्ट सहन किये जाये, जप किये जाये, श्रमणवेश धारण कर बाह्य चारित्र का पालन किया जाय, किन्तु समभावरूपी सामायिक के अभाव में किसी को मुक्ति नहीं मिलती है। देशावकाशिकव्रत- कुछ समय के लिए दिशाओं की मर्यादा को निश्चित करना, देशावकाशिकव्रत है। देशावकाशिकव्रत प्रहर, मुहूर्त व दिनभर के लिए भी ग्रहण किया जा सकता है। श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र में कहा है कि दिशापरिमाणव्रत का प्रतिदिन संकोच किया जाता है और उस संकुचित सीमा के बाहर के आस्रव श्रावकाचार 267
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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