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________________ तप के तप से तात्पर्य सिर्फ उपवास आदि काय - क्लेश ही नहीं वरन् स्वाध्याय, ध्यान, विनय आदि भी तप के अन्तर्गत ही आते हैं । भगवतीसूत्र में तप के मुख्यतः दो भेद किये गये हैं; 1. बाह्य तप, 2. आभ्यान्तर तप । ग्रंथ में इनके भेद - प्रभेदों का विस्तार से विवेचन है । बाह्य तप जिस तप में बाह्य शारीरिक क्रियाओं की प्रधानता होती है तथा जो बाह्यद्रव्यों की अपेक्षा युक्त होने से दूसरों को दृष्टिगोचर होता है, वह बाह्य तप कहलाता है । बाह्यतप स्थूल होता है । बाह्य तप के छः भेद ग्रंथ में किये गये हैं 1. अनशन 2. अवमौदर्य 3. भिक्षाचर्या 4. रसपरित्याग 5. कायक्लेश 6. प्रतिसंलीनता अनशन अनशन का अर्थ है, सब प्रकार के भोजन पानी का त्याग करना । अनशन से न केवल तन अपितु मन की भी शुद्धि हो जाती है तथा शरीर का तेज प्रकट होता है । भगवतीसूत्र में अनशन तप की महत्ता बताते हुए कहा है कि चतुर्थभक्त (उपवास) करने वाला श्रमण निर्ग्रथ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, उतना नैरयिक जीव एक हजार वर्षों में भी नहीं करते हैं । इसी प्रकार बेला, तेला, चौला करने वाला श्रमण जितने कर्मों का क्षय करता है, उतने कर्मों की निर्जरा एक नैरयिक कोटा - कोटी वर्षों में भी नहीं कर पाता है । इसे उदाहरण द्वारा समझाते हुए कहा गया है कि तपाये हुए लोहे की कढ़ाई पर पानी की बूंद शीघ्र नष्ट हो जाती है, उसी प्रकार तपस्वी श्रमण के कर्म शीघ्र नष्ट हो जाते हैं । अनशन के प्रमुख दो भेद हैं; 1. इत्वरिकअनशन, 2. यावत्कथिक अनशन I इत्वरिक अनशन - इत्वरिक अनशन में कुछ निश्चित समय के लिए आहार त्याग किया जाता है। इत्वरिक अनशन अनेक प्रकार का होता है, यथा चतुर्थभक्त (उपवास), अष्टमभक्त (तेला), दशमभक्त ( चौला), द्वादशभक्त ( पचौला), चतुर्दशभक्त (छह उपवास), अर्द्धमासिक, मासिक, द्विमासिक, त्रिमासिक आदि । यावत्कथिक अनशन - यावत्कथिक अनशन में जीवनपर्यन्त आहारत्याग किया जाता है। इसके दो प्रकार हैं; पादपोपगमन व भक्तप्रत्याख्यान । अवमौदर्य अवमौदर्य तप का अर्थ है, भूख से कम खाना । इससे न केवल मनोबल दृढ़ रहता है अपितु शारीरिक संस्थान भी सुदृढ़ होता है। इसके दो भेद किये गये हैं; भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन 240
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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