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________________ जीविकोपार्जन- ग्रंथा4 में कहा है गोशालक के पिता 'मंखली' मंख जाति के थे। वे चित्रफलक हाथ में लेकर चित्र बताकर आजीविका करने वाले भिक्षुओं की वृत्ति अर्थात् मंखत्व से जीवन-यापन करते थे। युवा होने पर गोशालक ने भी स्वयं व्यक्तिगत रूप से चित्रफलक तैयार किया और उसे हाथ में लेकर मंखवृत्ति से विचरण करने लगा। इस कथन से स्पष्ट है कि आजीविक साधु स्वयं अपनी जीविका का उपार्जन करते थे। आचार-व्यवहार'5- आजीविक मत के आचार-व्यवहार का विवेचन करते हुए कहा गया है कि समस्त जीव अक्षीणपरिभोजी (सचित्ताहारी) होते हैं। इसलिए वे हनन, ताड़न, काटकर, भेदनकर, कतरकर (चमड़ी आदि) उतारकर और विनष्ट करके खाते हैं। इनका देव अरहंत (गोशालक अर्हत्) है। ये मातापिता की सेवा-शुश्रूषा करते हैं। वे पाँच प्रकार के फलों- उदुम्बर के फल, वड़ के फल, बोर, सत्तर के फल, पीपल का फल तथा प्याज, लहसुन, कन्दमूल के त्यागी होते हैं तथा अनिलांछित (खस्सी-बधिया न किये हुए) और नाक नहीं नाथे हुए बैलों से, त्रस प्राणी की हिंसा से रहित व्यापार करके अपनी आजीविका करते हैं। परिवर्त्त-परिहार- आजीविक मत का प्रमुख सिद्धान्त परिवर्त्त-परिहार है। परिवर्त्त-परिहार सिद्धान्त के अनुसार सभी जीव परिवर्त-परिहार करते हैं अर्थात् मरकर पुनः उसी शरीर में उत्पन्न होते हैं- एवं खलु सव्वजीवा वि पउट्टपरिहारं परिहरंति - (15.1.56)। भगवतीसूत्र में वर्णित गोशालक के जीवन चरित्र से स्पष्ट होता है कि तिल के पौधे की निष्पत्ति की घटना के समय भगवान् महावीर ने जब यह प्ररूपणा की - कि 'वनस्पतिकायिक जीव मर-मरकर उसी वनस्पतिकाय के शरीर में पुनः उत्पन्न हो जाते हैं।' तभी दुराग्रहवश गोशालक के मन में सभी जीवों के परिवर्तपरिहार की मान्यता ने जन्म लिया। बाद में स्वयं गोशालक द्वारा महावीर से अपनी पहचान छिपाने के लिए सात परिवर्त-परिहार के संचार का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि मैंने सात परिवर्त-परिहार में संचार किया। यथा- ऐणेयक, मल्लरामक, मण्डिक, रौह, भारद्वाज, गौतमपुत्र अर्जुन और मंखलीपुत्र गोशालक। मुक्ति का सिद्धान्त - गोशालक द्वारा मुक्ति के सिद्धान्त का विवेचन करते हुए कहा गया है कि हमारे सिद्धान्त के अनुसार जो भी सिद्ध हुए हैं, सिद्ध होते हैं, अथवा सिद्ध होंगे, वे सब (पहले) चौरासी लाख महाकल्प (कालविशेष), महावीरेतर दार्शनिक परम्पराएँ 207
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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