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________________ महावीरेतर दार्शनिक परम्पराएँ भगवतीसूत्र महावीर द्वारा प्रतिपादित जैन-धर्म दर्शन का ग्रंथ है, किन्तु प्रसंगवश इसमें गौतम गणधर एवं अन्य शिष्यों द्वारा किये गये प्रश्नों के उत्तर प्रदान करने में भगवान् महावीर ने अन्य दार्शनिक मान्यताओं के विषय में भी प्ररूपणा की है। भगवान् महावीर का काल धर्म-दर्शन की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध था। अनेक मतमतान्तर प्रचलित थे। सूत्रकृतांग में महावीरकालीन तीन सौ तरेसठ दार्शनिक मान्यताओं का उल्लेख मिलता है। वस्तुतः सभी दर्शन अपने-अपने ढंग से आत्मा तथा जगत की व्याख्या करने में जुटे थे। चूंकि उस समय साम्प्रदायिक कट्टरता का अभाव था अतः दार्शनिक सत्य की प्राप्ति हेतु परस्पर संवाद एवं शास्त्रार्थ करते थे। भगवतीसूत्र में अनेक स्थानों पर महावीर एवं उनकी परंपरा के अन्य श्रमणों के साथ पार्श्व परंपरा के स्थविर, मंखलि गोशालक, स्कन्दक परिव्राजक, जमालि आदि के प्रश्रोत्तर एवं संवाद परिलक्षित होते हैं। इन संदर्भो में महावीरेतर दार्शनिक परंपराओं के विषय में सामग्री उपलब्ध होती है। इन्हीं प्रसंगों के आधार पर महावीरेतर दार्शनिक परंपराओं का संक्षिप्त विवेचन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा इन मान्यताओं का विवेचन इस दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है कि व्यक्ति महावीर-दर्शन से भिन्न धारणाओं को समझें फिर विवेक के आलोक में सही गलत का निर्णय करे। इससे महावीर दर्शन के प्रति उसकी आस्था दृढ़ होगी और अन्य मिथ्या मान्यताओं से वह मुक्त भी हो सकेगा। पार्थापत्यीय प्रस्तुत आगम में तेईसवें ऐतिहासिक तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनार्थ के चातुर्याम धर्म व उनके अनुयायियों का उल्लेख हुआ है। ग्रंथ के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि भगवान् महावीर के काल में पार्श्वपरंपरा के सैंकड़ों श्रमण मौजूद थे। भगवतीसूत्र' के दूसरे शतक में यह उल्लेख है कि पार्थापत्यीय स्थविर पाँच सौ अनगारों के साथ तुंगिका नगरी में पधारे। तुंगिका नगरी के श्रमणोपासकों ने उनसे 200 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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