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________________ 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26. 27. 28. 29. 30. 31. 32. 33. 34. 35. वही, पृ. 58 व्या. सू. 2.1.24, 9,33,101 वही, 2.1.24 वही, 7.3.23 वही, 9.33.101, 1.4.11 आगम-युग का जैन दर्शन, पृ. 72 व्या. सू., 2.1.24 आगम-युग का जैन दर्शन, व्या. सू., 1.4.7-10 वही, 14.4.1-4 वही, 20.5.15-19 वही, 18.10.27 पृ. 73 प्रज्ञापनासूत्र, पद 3, सूत्र 56 वही, 13.7.15-18 4 'आया सामाइए आया सामाइयस्स अट्ठे' - वही, 1.9.21 वही, 12.10.10, 16 वही, 1.9.28 वही, 12.10.1 वही, 7.10.6 अत्थित्तं अत्थिते परिणमइ, नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमति वही, 1.3.7 आप्तमीमांसा (तत्व दीपिका), पृ. 326, 327 'सोऽप्रयुक्तोऽपि सर्वत्र स्यात्कारोऽर्थात्प्रतीयते' - लघीयस्त्रय, तृतीय प्रवचन प्रवेश, लोक 63, पृ. 22 'अनेकान्तात्मकार्थकथनं स्याद्वाद्...' - वही, लोक 62, पृ. 21 मेहता, मोहनलाल, जैन धर्म-दर्शन, पृ. 359 36. 37. 38. 39. 40. जैन दर्शन, पृ. 374 41. जैन दर्शन स्वरूप और विश्लेषण, पृ. 254 आगम-युग का जैन दर्शन, पृ. 92-93 42. 43. वही, पृ. 99-100 तत्त्वार्थभाष्य, 5.3 44. 45. सन्मतिप्रकरण, 1.36 46. 47. सप्तभंगीतरंगिणी, पृ. 1 तत्त्वार्थराजवार्तिक, 1.6 पृ. 32 — विशेषावश्यकभाष्य, 2232 आप्तमीमांसा सम्पा. छाबड़ा जयचन्द, 16, पृ. 25 अनेकान्तवाद, स्याद्वाद एवं नयवाद 197
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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