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वही, पृ. 58
व्या. सू. 2.1.24, 9,33,101
वही, 2.1.24
वही, 7.3.23
वही, 9.33.101, 1.4.11
आगम-युग का जैन दर्शन, पृ. 72
व्या. सू., 2.1.24
आगम-युग का जैन दर्शन,
व्या. सू., 1.4.7-10
वही, 14.4.1-4
वही, 20.5.15-19
वही, 18.10.27
पृ. 73
प्रज्ञापनासूत्र, पद 3, सूत्र 56
वही, 13.7.15-18
4
'आया सामाइए आया सामाइयस्स अट्ठे' - वही, 1.9.21
वही, 12.10.10, 16
वही, 1.9.28
वही, 12.10.1
वही, 7.10.6
अत्थित्तं अत्थिते परिणमइ, नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमति वही, 1.3.7
आप्तमीमांसा (तत्व दीपिका), पृ. 326, 327
'सोऽप्रयुक्तोऽपि सर्वत्र स्यात्कारोऽर्थात्प्रतीयते' - लघीयस्त्रय, तृतीय प्रवचन प्रवेश, लोक
63, पृ. 22
'अनेकान्तात्मकार्थकथनं स्याद्वाद्...' - वही, लोक 62, पृ. 21
मेहता, मोहनलाल, जैन धर्म-दर्शन, पृ. 359
36.
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38.
39.
40.
जैन दर्शन, पृ. 374
41.
जैन दर्शन स्वरूप और विश्लेषण, पृ. 254 आगम-युग का जैन दर्शन, पृ. 92-93
42.
43.
वही, पृ. 99-100 तत्त्वार्थभाष्य, 5.3
44.
45. सन्मतिप्रकरण, 1.36
46.
47.
सप्तभंगीतरंगिणी, पृ. 1
तत्त्वार्थराजवार्तिक, 1.6 पृ. 32
—
विशेषावश्यकभाष्य, 2232
आप्तमीमांसा सम्पा. छाबड़ा जयचन्द, 16, पृ. 25
अनेकान्तवाद, स्याद्वाद एवं नयवाद
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