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________________ हो सकते हैं और उनका उत्तर भी सात प्रकार का होता है। इस प्रकार एक-एक धर्म में एक-एक सप्तभंगी सिद्ध होती है। अनंतधर्मात्मक वस्तु की अपेक्षा से अनन्तसप्तभंगी हो सकती है। इस सप्तभंगी का स्वरूप इस प्रकार है। __1. स्यादअस्ति, 2. स्यादनास्ति, 3. स्याद्अस्ति-नास्ति, 4. स्याद्अवक्तव्य, 5. स्याद्अस्ति-अवक्तव्य, 6. स्याद्नास्ति-अवक्तव्य, 7. स्याद्अस्ति-नास्तिअवक्तव्य। मूल में अस्ति, नास्ति और अवक्तव्य ये तीन ही भंग हैं। इनमें तीन अस्ति-नास्ति, अस्ति-अवक्तव्य, नास्ति-अवक्तव्य ये द्विसंयोगी भंग तथा एक अस्ति-नास्ति-अवक्तव्य त्रिसंयोगी भंग मिलाने से सात भंग बनते हैं। भगवतीसूत्र में स्याद्वाद जैनागमों में स्यावाद शब्द का प्रयोग हुआ है। प्रो. उपाध्याय ने इस बात का समर्थन किया है। इसके उदाहरण के रूप में उन्होंने सूत्रकृतांग की यह गाथा प्रस्तुत की है नो छायए नो वि य लूसएज्जा माणं य सेवेज पगासणं च। न यावि पन्ने परिहास कुजा न यासियावाय वियागरेजा (1.14.19) लेकिन ग्रन्थ के टीकाकार यहाँ उनसे सहमत नहीं हैं। उन्होंने न चाशीर्वाद ऐसा संस्कृत प्रतिरूप किया है। आगमों में स्याद्वाद शब्द के प्रयोग को लेकर मतभेद हो सकता है, किन्तु स्यात् शब्द के प्रयोग को लेकर मतभेद की कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि भगवतीसूत्र में अनेक स्थानों पर वस्तु के नानाधर्मों को स्पष्ट करने के लिए 'स्यात्' शब्द का प्रयोग हुआ है। उदाहरण दृष्टव्य है; जीवा सिय सासता, सिय असासता – (7.2.36) जीव कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं। परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सासए असासए? गोयमा! सिय सासए, सिय असासए - (14.4.8) भगवन् परमाणु-पुद्गल शाश्वत है या अशाश्वत? गौतम! वह कथंचित् शाश्वत है और कथंचित् अशाश्वत है। स्पष्ट है कि प्रस्तुत ग्रंथ में स्यात् शब्द को 'सिय' से व्यक्त किया गया है, जिसका अर्थ है कथंचित्। भगवतीसूत्र में प्रयुक्त 'सिय' शब्द का प्रयोग यह सिद्ध करता है कि आगमों में स्याद्वाद का अस्तित्व था, जिसे कि बाद के आचार्यों ने विकसित कर एक सिद्धान्त का रूप दिया। अनेकान्तवाद, स्याद्वाद एवं नयवाद 185
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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