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________________ स्याद्वाद का अर्थ व परिभाषा स्याद्वाद शब्द स्यात् + वाद इन दो शब्दों के मेल से बना है। वाद का अर्थ है- कथन या प्रतिपादन । स्यात् विधिलिंग में बना हुआ तिङप्रतिरूपक निपात है। वह अपने में एक महान उद्देश्य एवं वाचक शक्ति को छिपाये हुए है। स्यात् के विधि-लिंग में विधि, विचार आदि अनेक अर्थ होते हैं। उनमें 'अनेकान्त' अर्थ यहाँ विवक्षित है। स्यात् शब्द बतलाता है कि वस्तु एक रूप नहीं है, किन्तु अनेक रूप है। वस्तु में सत्व के साथ ही असत्व आदि अनेक धर्म रहते हैं। अकलंक का कथन है कि जहाँ कहीं स्यात् शब्द का प्रयोग दृष्टिगोचर नहीं हो वहाँ भी उसे अनुस्यूत ही समझ लेना चाहिये। स्याद्वाददृष्टि विविध अपेक्षाओं से एक ही वस्तु में नित्यता-अनित्यता; सदृशता-विसदृशता; वाच्यता-अवाच्यता, सत्ता-असत्ता आदि परस्पर विरुद्ध से प्रतीत होने वाले धर्मों का अविरोध प्रतिपादन करके उनका सुन्दर एवं बुद्धिसंगत समन्वय प्रस्तुत करती है। स्याद्वाद व अनेकान्तवाद जैन ग्रंथों में कही स्यावाद शब्द आया है तो कहीं अनेकान्तवाद शब्द का प्रयोग हुआ है। प्रायः जैन दर्शनिकों ने इन दोनों शब्दों का एक ही अर्थ में प्रयोग किया है। क्योंकि दोनों शब्दों के पीछे एक ही प्रयोजन छिपा है; वस्तु की अनेकान्तात्मकता को प्रतिपादित करना। जैन दर्शन यह स्वीकार करता है कि प्रत्येक सत् अनन्तधर्मात्मक है। इस अनेकान्तात्मक वस्तु को भाषा द्वारा प्रतिपादित करने वाला सिद्धान्त स्याद्वाद कहलाता है। आचार्य मल्लिषेण ने लिखा है कि स्याद्वाद अनेकांत का प्रतिपादन करता है - स्यादित्यव्ययमनेकान्तद्योतकमष्टास्वपि - (स्याद्वादमंजरी, . 25 की टीका) अनेकान्त दृष्टि ज्ञानरूप है। स्यावाद वचनरूप दृष्टि है। दूसरे शब्दों में स्याद्वाद श्रुत है और अनेकान्त वस्तुगत तत्त्व है। अनेकान्त दृष्टि द्वारा विराट वस्तु को इस प्रकार जाना जाता है जिसमें विवक्षित धर्म को जानकर अन्य धर्मों को गौण कर दिया जाता है, जिससे पूरी वस्तु का मुख्य-गौण भाव से स्पर्श हो जाता है। फिर उसी शैली से वचन प्रयोग करना, जिससे वस्तुतत्त्व का यथार्थ प्रतिपादन हो; स्याद्वाद है। स्याद्वाद भाषा की वह निर्दोष प्रणाली है, जो वस्तु तत्त्व का सम्यक् प्रतिपादन करती है। अनेकान्तात्मक वस्तु का कथन करने के लिए 'स्यात्' शब्द का प्रयोग करना पड़ता है। इसीलिए कहा गया है कि अनेकान्तात्मक अर्थ का कथन स्याद्वाद है। अनेकान्तवाद, स्याद्वाद एवं नयवाद 183
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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