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________________ भगवतीसूत्र में ज्ञान-विभाजन भगवतीसूत्र में ज्ञान-विभाजन के स्वरूप को प्रथम भूमिका में स्पष्ट किया जा चुका है। वहाँ सूत्रकार द्वारा आगे का वर्णन राजप्रश्नीयसूत्र से पूर्ण करने की सूचना दी गई है। राजप्रश्नीयसूत्र में इस विभाजन के पश्चात् अवग्रह के दो भेदों का उल्लेख मात्र करके शेष वर्णन नन्दीसूत्र से पूरा करने की सूचना दी गई है। नन्दीसूत्र में प्राप्त ज्ञान के विभाजन को देखने पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वहाँ प्रारंभ में ज्ञान के पाँचों भेदों को प्रत्यक्ष व परोक्ष में समाहित किया गया है तथा आभिनिबोधज्ञान के श्रुतनि:सृत तथा अश्रुतनिःसृत ये दो भेद किये गये हैं। भगवतीसूत्र में वर्णित विभाजन में ये भेद नहीं मिलते हैं। भगवतीसूत्र में ज्ञान के पाँचभेद करके आभिनिबोधिकज्ञान के अवग्रहादि चार भेदों को गिनाया गया है। इससे यह बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि भगवतीसूत्र में प्राप्त ज्ञान का विभाजन प्राचीन है, आगे इसी परंपरा का विकास हुआ है। नन्दीसूत्र व अन्य जैन ग्रंथों के अनुसार पाँचों ज्ञानों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है: सर्वप्रथम ज्ञान के पाँच भेद किये गये हैं फिर उन्हें संक्षेप में दो भागों में विभक्त किया गया है। प्रत्यक्ष व परोक्ष । प्रत्यक्ष ज्ञान प्रत्यक्षज्ञान के दो भेद किये गये हैं; (क) इन्द्रियप्रत्यक्ष (ख) नोइन्द्रियप्रत्यक्ष, (क) इन्द्रियप्रत्यक्षज्ञान पाँच प्रकार का बताया है 1. श्रोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्ष- जो कान से होता है 2. चक्षुरिन्द्रिय प्रत्यक्ष- जो आँख से होता है 3. घ्राणेन्द्रिय प्रत्यक्ष- जो नाक से होता है 4. जिह्वेन्द्रिय प्रत्यक्ष- जो जिह्वा से होता है 5. स्पर्शेन्द्रिय प्रत्यक्ष- जो त्वचा से होता है (ख) नोइन्द्रियप्रत्यक्षज्ञान तीन प्रकार का बताया गया है; 1. अवधिज्ञानप्रत्यक्ष, 2. मन:पर्यवज्ञानप्रत्यक्ष, 3. केवलज्ञानप्रत्यक्ष अवधिज्ञानप्रत्यक्ष जिस ज्ञान की सीमा होती है, उसे अवधिज्ञान कहते हैं। अवधिज्ञान केवल रूपी पदार्थों को ही जानता है। अवधिज्ञान के दो भेद हैं- 1. भवप्रत्ययिक, 2. क्षायोपशमिक। भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान जन्म के साथ उत्पन्न होने वाला तथा देवों व नारकों को ही होता है। क्षायोपशमिक अवधिज्ञान, अवधिज्ञानावरणीय कर्मों ज्ञान एवं प्रमाण विवेचन 163
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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