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________________ आकाश का स्वरूप विभिन्न जैनागमों में आकाश के स्वरूप का निरूपण किया गया है। उत्तराध्ययन में आकाश का स्वरूप बताते हुए कहा गया है- भायणं सव्वदव्वायं नहं ओगाहलक्खणं - (28.9) अर्थात् आकाश सब द्रव्यों का भाजन है तथा इसका लक्षण अवगाहन है। पंचास्तिकाय में आकाश की परिभाषा इस प्रकार दी गई है- जो सब जीवों को, पुद्गलों को, और शेष बचे धर्म, अधर्म और काल द्रव्य को पूरा स्थान देता है, उसे लोक में आकाश द्रव्य कहते हैं। तत्त्वार्थसूत्र7 में आकाश का स्वरूप बताते हुए कहा गया है कि आकाश द्रव्य नित्य, अवस्थित व अरूपी है। यह एक अखंड द्रव्य है व निष्क्रिय है। अवगाहना देना इसका उपकार है। सर्वार्थसिद्धि38 में कहा है- अवगाहन करने वाले जीव और पुद्गलों को अवकाश देना आकाश का उपकार जानना चाहिये। जैन सिद्धान्त दीपिका में आचार्य तुलसी ने आकाश का लक्षण अवगाहना स्वीकार किया है- अवगाहलक्षण आकाशः।- (1.6)। प्रायः जैनागमों में जो आकाश की परिभाषा दी गई है वह उसके अवगाहना लक्षण को स्पष्ट करती है। भगवतीसूत्र में विस्तृत रूप से आकाश की परिभाषा दी गई है, जिससे उसका पूर्ण स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। आकाशास्तिकाय वर्णरहित, गंधरहित, रसरहित और स्पर्शरहित है अर्थात् अरूपी है। शाश्वत है। अवस्थित है। लोक-अलोक प्रमाण है अर्थात् अनन्त है। अन्य पाँच द्रव्य लोक-प्रमाण होने से असंख्यात हैं, आकाश लोक-अलोक प्रमाण होने से अनन्त है। गुण की अपेक्षा अवगाहना गुण वाला है। __द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव की दृष्टि से आकाश का स्वरूप बताते हुए कहा है कि द्रव्य दृष्टि से आकाश एक द्रव्य है, क्षेत्र की दृष्टि से लोक-अलोक प्रमाण है, काल की दृष्टि से तीनों कालों में वर्तमान होने के कारण नित्य है। भाव की दृष्टि से वर्णरहित, गंधरहित, रसरहित व स्पर्शरहित है तथा गुण की दृष्टि से अवगाहना गुण वाला है। इस प्रकार भगवतीसूत्र में अन्य द्रव्यों की तरह द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव से आकाश का स्वरूप बताया गया है। आकाश के पर्यायवाची भगवतीसूत्र में आकाश के निम्न पर्यायवाची शब्दों का निरूपण हुआ हैयथा- आकाश, आकाशास्तिकाय, अथवा गगन, नभ, अथवा सम, विषम, खह (ख), विहायस, वीचि, विवर, अम्बर, अम्बरस, छिद्र, शुषिर, मार्ग, विमुख, अर्द, अरूपी-अजीवद्रव्य 143
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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