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________________ स्थावर जीवों की स्थिति, श्वास, आहार आदि का विवेचन भगवतीसूत्र में स्थावर जीवों के आहार, स्थिति, श्वासोच्छ्वास, वेदना, क्रियाकर्म, लेश्या आदि के विषय में विस्तार से निरूपण किया गया है। स्थिति – स्थावर जीवों की स्थिति की चर्चा करते हुए ग्रंथ में कहा है कि पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त व उत्कृष्ट बाइस हजार वर्ष, अप्कायिक की उत्कृष्ट स्थिति सात हजार वर्ष, तेजस्कायिक की तीन अहोरात्र, वायुकायिक की तीन हजार वर्ष और वनस्पतिकायिक की दस हजार वर्ष है। ____ श्वास- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय आदि जीवों की तरह पृथ्वीकायिक आदि एकेन्द्रिय जीवों के आभ्यन्तर एवं बाह्य उच्छ्वास व निःश्वास को हम जानते व देखते नहीं हैं फिर भी वे आभ्यन्तर व बाह्य उच्छवास व निःश्वास लेते व छोड़ते हैं। भगवतीसूत्र में वायुकाय में भी श्वसन प्रक्रिया का निरूपण किया गया है। वायुकायजीव वायुकायों को ही बाह्य व आभ्यन्तर उच्छ्वास व निःश्वास के रूप में ग्रहण करते हैं व छोड़ते हैं। स्थावर एकेन्द्रिय जीवों के श्वासोच्छ्वास के काल का निरूपण करते हुए कहा है कि पृथ्वीकायिक आदि स्थावर जीव विमात्रा से तथा विषम काल में श्वासोच्छ्वास लेते हैं।" अर्थात् इनके श्वासोच्छ्वास का समय नियत नहीं है। आहार- भगवतीसूत्र में पृथ्वीकायिक आदि स्थावर जीवों को आहारार्थी कहा गया है। उनकी आहार शैली का विस्तार से विवेचन करते हुए ग्रंथ में कहा गया है- वे प्रति समय, निरन्तर आहार की अभिलाषा रखते हैं। द्रव्य से अनन्त प्रदेशी द्रव्यों का, क्षेत्र से छः दिशाओं से आहार लेते हैं, वर्ण की अपेक्षा काला, नीला, पीला, लाल, हारिद्र तथा श्वते वर्ण के द्रव्यों का आहार करते हैं। गंध की अपेक्षा से सुरभिगंध व दुरभिगंध वाले द्रव्यों का, रस की अपेक्षा से तिक्त आदि पाँचो रसों वाले द्रव्यों का, स्पर्श की अपेक्षा से कठोर आदि आठों स्पर्शों वाले द्रव्यों का आहार करते हैं। वे असंख्यातवें भाग का आहार करते हैं, अनन्तवें भाग का स्पर्श आस्वादन करते हैं। पृथ्वीकायिक जीवों के एकमात्र स्पर्शेन्द्रिय ही होती है, इसलिए स्पर्शेन्द्रिय द्वारा किये गये आहार पुद्गल को साता-असाता-रूप से बारबार परिणमाते हैं। वनस्पति-कायिक जीवों की आहार-विवेचना में कहा है कि वनस्पतिकायिक जीव वर्षा ऋतु में सर्वाधिक आहार करते हैं। तदनंतर शरद ऋतु में वे सबसे कम आहार करते हैं, किन्तु बहुत से उष्णयोनि वाले जीव व पुद्गल वनस्पतिकाय के रूप में उग जाते हैं इसी कारण ग्रीष्म ऋतु में भी बहुत से वनस्पतिकायिक पत्तों, फलों व फूलों से सुशोभित होते हैं। 104 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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