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________________ कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इसे दृष्टांत द्वारा समझाते हुए कहा है कि कोई पुरुष कछुए, गाय, भैंसे, मनुष्य आदि के दो तीन या संख्यात टुकड़े करने के पश्चात् उन टुकड़ों के बीच के भाग को हाथ से, पैर से, अंगुलि से, शलाका से, काष्ठ से या लकड़ी के छोटे से टुकड़े से स्पर्श करें, खींचे या किसी तीक्ष्ण (शस्त्र) से छेदे या अग्निकाय उसे जलाये तो भी वह जीव- प्रदेशों को जरा भी छेद नहीं सकता, न ही उसे थोड़ी भी पीड़ा पहुँचा सकता है। जीव के प्रदेशों पर इन सब चीजों के प्रहार से कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। गुरुत्व व लघुत्व की धारणा भगवतीसूत्र” में बताया गया है कि प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, रतिअरति परपरिवाद, मायामृषा और मिथ्यादर्शनशल्य इन अठारह पापस्थानों के सेवन करने से जीव शीघ्र गुरुत्व ( भारीपन ) को प्राप्त होता है, इन अठारह पापस्थानों से विरत होने पर जीव लघुत्व (हल्केपन) को प्राप्त करता है । इसे स्पष्ट कर हुए आगे कहा है कि जीव प्राणातिपात आदि पापों का सेवन करने से संसार को बढ़ाते हैं और बार- बार भव- भ्रमण करते हैं तथा इनसे निवृत्त होने से जीव संसार को घटाते हैं, अल्पकालीन करके संसार को लांघ जाते हैं। जीव परिणाम व परिणमन द्रव्य का एक अवस्था बदलकर दूसरी अवस्था को जाना परिणाम या परिणमन कहलाता है । भगवतीसूत्र में जीव के दस परिणाम बताये गये हैं 1. गति, 2. इन्द्रिय, 3. कषाय, 4. लेश्या, 5. योग, 6. उपयोग, 7. ज्ञान, 8. दर्शन, 9. चारित्र, 10. वेद । यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का समग्र परिणामपद देखने का निर्देश किया गया है। जीव के परिणमन को विस्तार से समझाते हुए कहा गया है कि प्राणातिपात, मृषावाद आदि अठारह पापस्थान, औत्पतिकी आदि चार प्रकार की बुद्धि, अवग्रह आदि मतिज्ञान, उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुष - पराक्रम, नारक आदि गतियाँ, ज्ञानावरणीयादि आठ कर्म, लेश्या, तीन अज्ञान, चार दर्शन, पाँच ज्ञान, तीन दृष्टि, चार संज्ञा, पांच शरीर, तीन योग, साकारोपयोग एवं अनाकारोपयोग; ये सब व इनके जैसे अन्य धर्म आत्मा के सिवाय अन्यत्र परिणमन नहीं करते हैं । वस्तुतः ये सभी आत्मा के पर्याय हैं और पर्याय अपनी पर्यायी के साथ कथंचित् एक रूप होते हैं, अतः ये सभी पर्याय आत्मरूप होने के कारण आत्मा से अन्यत्र भिन्न पदार्थ में परिणमन नहीं करते हैं 154 जीव द्रव्य 93
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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