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________________ होता है पर इसमें जीव न उत्पन्न होता है न नष्ट होता है । जीव की नित्यानित्यता से क्या तात्पर्य है इसे स्पष्ट करते हुए जमाली के प्रसंग में भगवान् महावीर ने कहा है कि तीनों कालों में ऐसा कोई समय नहीं जब जीव न हो इसलिए जीव शाश्वत, ध्रुव एवं नित्य कहा गया है । किन्तु, नारक मिटकर तिर्यंच होता है । तिर्यंच मिटकर मनुष्य बनता है और कदाचित् मनुष्य होकर वह देव हो जाता है । इस अपेक्षा से वह अशाश्वत व अनित्य है । I स्पष्ट है कि यहाँ जीव को त्रैकालिक होने के कारण द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से शाश्वत कहा गया है, किन्तु भिन्न-भिन्न पर्यायों में परिणमन करने के कारण पर्यायार्थिक नय की दृष्टि से अशाश्वत कहा है । नाना अवस्थाओं में रहने पर भी जीवत्व कभी लुप्त नहीं होता पर जीव की अवस्थाएँ लुप्त होती रहती हैं। भौतिकवादी दर्शन जहाँ आत्मा को सर्वथा अनित्य रूप में स्वीकार करते हैं तथा शाश्वतवादी दर्शन आत्मा को सर्वथा नित्य रूप में स्वीकार करते हैं । भगवतीसूत्र में शाश्वतवाद और उच्छेदवाद दोनों के समन्वय का प्रयत्न है । चेतन जीव- द्रव्य का विच्छेद कभी नहीं होता है । इस दृष्टि से जीव को नित्य मानकर शाश्वतवाद को प्रश्रय दिया गया है और जीव की नाना अवस्थाएँ जो स्पष्ट रूप से विछिन्न होती हुई देखी जाती हैं, उनकी अपेक्षा से उच्छेदवाद को भी प्रश्रय दिया गया है । 19 सान्तता व अनन्तता जीव की सान्तता व अनन्तता को भगवतीसूत्र में द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव की दृष्टि से स्पष्ट किया गया है । द्रव्य की अपेक्षा एक जीव अन्त सहित है । क्षेत्र की अपेक्षा से जीव असंख्य प्रदेश वाला है और असंख्य प्रदेशों का अवगाहन किए हुए है, अत: वह अन्तसहित है । काल की अपेक्षा से ऐसा कोई काल नहीं था, जिसमें जीव - द्रव्य न था; ऐसा कोई काल नहीं है, जिसमें जीव- द्रव्य नहीं रहेगा अतः जीव-द्रव्य ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है। भाव की अपेक्षा से जीव अनन्त ज्ञानपर्यायरूप है, अनन्त दर्शनपर्यायरूप है, अनन्तचारित्रपर्यायरूप है, अनन्त गुरुलघुपर्यायरूप है, अनन्त अगुरुलघुपर्यायरूप है और अन्त रहित है । इस प्रकार द्रव्य-जीव व क्षेत्र - जीव अन्त सहित है, तथा काल - जीव और भाव - जीव अन्त रहित है । अभेद्य अछेद्य भगवतीसूत्र'" में जीव को अभेद्य, अछेद्य, अदाह्य कहा है अर्थात् जीव का छेदन-भेदन नहीं हो सकता है । शस्त्रादि से प्रहार करने पर जीव के प्रदेशों पर भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन 92
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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