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आगमकालीन धार्मिक एवं दार्शनिक विचार •63
कषाय कुशील
1. ज्ञान कुशील-संज्वलन कषाय वश ज्ञान का प्रयोग करने वाला। 2. दर्शन कुशील-संज्वलन कषाय वश दर्शन का प्रयोग करने वाला। 3. चरित्र कुशील-संज्वलन कषाय से आदिष्ट होकर किसी को शाप देने वाला। 4. लिंग कुशील-कषाय वश अन्य साधुओं का वेश करने वाला। 5. यथासूक्ष्म कुशील-मानसिक रूप से संज्वलन कषाय करने वाला।
निर्ग्रन्थ (निगण्ठ)
जिन्होंने राग द्वेष के बन्ध खोल दिये हों और अन्तर्मुहूर्त में केवल ज्ञान प्राप्त करते हैं। 41 जिनके मोहनीय कर्म छिन्न हो गये हैं।142 किसी भी ग्रन्थि में न बंधे होने के कारण यह निर्ग्रन्थ, निगण्ठ या जैन कहे जाते थे।।43 आचारांग में निर्ग्रन्थ के लिए कहा गया है कि वह आत्मवादी है, लोकवादी है, कर्मवादी है, क्रियावादी है।।44
स्नातक
जिन्होंने सर्वज्ञता को पा लिया है वे स्नातक तथा निर्ग्रन्थ हैं। स्नातक पांच प्रकार के होते हैं।45:
1. अच्छवी काययोग का निरोध करने वाला। 2. अशबल-निरतिवार साधुत्व का पालन करने वाला। 3. अकर्माश-घात्यकर्मों का पूर्णतः क्षय करने वाला। 4. संशुद्धज्ञानदर्शनधारी-अर्हत, जिन, केवली। 5. अपरिश्रावी-सम्पूर्ण काय योग का निरोध करने वाला।
श्रमण इन्द्रियमुण्ड, अपरिग्रही, अकिंचन, शील से सुगन्धित और हिंसा भीरु थे।।46 स्थानांग सूत्र147 में श्रमण के गुणों से युक्त दस प्रकार के मुण्ड बताये हैं
1. क्रोधमुण्ड-क्रोध का अपनयन करने वाला। 2. मानमुण्ड–मान का अपनयन करने वाला। 3. मायामुण्ड-माया का अपनयन करने वाला। 4. लोभमुण्ड-लोभ का अपनयन करने वाला। 5. शिरमुण्ड-शिर के केशों का लुंचन करने वाला।