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________________ 62 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति 3. चरित्र पुलाक-मूलगुण तथा उत्तरगुण दोनों में ही दोष लगाने वाला। 4. लिंग पुलाक-शास्त्रविहित उपकरणों से अधिक उपकरण रखने वाला या बिना ही कारण अन्य लिंग को धारण करने वाला। 5. यथासूक्ष्म पुलाक-प्रमादवश अकल्पनीय वस्तु को ग्रहण करने का मन में भी चिन्तन करने वाला या उपर्युक्त पांचों अतिचारों में से कुछ-कुछ अतिचारों का सेवन करने वाला। बकुश शरीरविभूषा आदि के द्वारा उत्तरगुणों में दोष लगाने वाला बकुश निर्ग्रन्थ कहलाता है। इसके चरित्र में शुद्धि और अशुद्धि दोनों का सम्मिश्रण होने के कारण विचित्र वर्ण वाले चित्र की तरह विचित्रता होती है। बकुश पांच प्रकार के होते हैं।।39 1. आभोग बकुश-जानबूझ कर शरीर की विभूषा करने वाला। 2. अनाभोग बकुश-अनजाने में शरीर की विभूषा करने वाला। 3. संवृत बकुश-छिप-छिप कर शरीर की विभूषा करने वाला। 4. असंवृत बकुश-प्रकट रूप में शरीर की विभूषा करने वाला 5. यथासूक्ष्म बकुश-प्रकट या अप्रकट में शरीर आदि की सूक्ष्म विभूषा करने वाला। कुशील मूल तथा उत्तरगुणों में दोष लगाने वाला कुशील निर्ग्रन्थ कहलाता है। इसके प्रमुख रूप से दो प्रकार हैं-प्रतिषेवना कुशील तथा कषाय कुशील। प्रतिषेवना कुशील'40 1. ज्ञान कुशील-काल, विनय आदि ज्ञानाचार की प्रतिपालना नहीं करने वाला। 2. दर्शन कुशील-निष्काक्षित आदि दर्शनाचार की प्रतिपालना नहीं करने वाला। 3. चरित्र कुशील-कौतुक, मूर्तिकर्म, प्रश्नाप्रश्न , निमित्त, आजीविका, कल्ककुरुका, लक्षण, विद्या तथा मन्त्र का प्रयोग करने वाला। 4. लिंग कुशील-वेष से आजीविका करने वाला। 5. यथासूक्ष्म कुशील-अपने को तपस्वी आदि कहने से हर्षित होने वाला।
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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