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________________ 50 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति कर्तव्य और बौद्ध तथा जैन भिक्षुओं के लिए निर्धारित व्रतों और नियमों में हिन्दुओं का अनुकरण किया है। इन विद्वानों के अनुसार हिन्दू धर्म की प्राचीनता निर्विवाद है। बुद्ध अपने सम्प्रदाय के संस्थापक व महावीर के समकालीन थे। महावीर अपने सम्प्रदाय के एक सुधारक मात्र थे। अत: यदि ऋण की ही चर्चा करनी है तो दोनों ब्राह्मणेत्तर सम्प्रदाय हिन्दूधर्म के ऋणी हैं। अपनी मान्यता के लिए इन विद्वानों ने जो प्रमाण दिये हैं वह संन्यासियों के लिए निर्धारित नियमों से तुलनीय हैं : 1. संन्यासी को अपने पास कुछ भी एकत्र नहीं करना चाहिए।48 जैन तथा बौद्ध सम्प्रदाय के भिक्षुओं के लिए भी यही नियम है कि वह अपने पास कुछ भी ऐसा न रखे जो व्यक्तिगत हो। 2. संन्यासी को ब्रह्मचारी होना चाहिए। जैन भिक्षु का चौथा महाव्रत और बुद्ध धर्म का पांचवां शील यही है। 3. संन्यासी को वर्षाकाल में अपना निवास नहीं बदलना चाहिए। यह नियम अन्य दोनों सम्प्रदायों में भी मिलता है। 4. संन्यासी अपनी भाषा, दृष्टि तथा कर्म पर संयम रखेगा, जैनों की तीन गप्तियां भी यही हैं। 5. संन्यासी पेड़-पौधों के उन्हीं अंशों को ग्रहण करेगा जो अपने आप अलग हो गये हैं। कुछ इसी तरह का नियम जैन सम्प्रदाय में भी है। जैन मुनि केवल उन्हीं साग सब्जियों तथा फलों आदि का सेवन कर सकते हैं जिनमें जीवन का कोइ अंश न हो या जो अचित्त हों। 6. संन्यासी बीजों का नाश नहीं करेगा।54 जैन सम्प्रदाय ने इस नियम में सभी जीवित प्राणियों का समावेश कर लिया है और अपने अनुयायियों को उपदेश दिया है कि वह अण्डों, जीवित प्राणियों, बीजों अंकुरों आदि को चोट न पहुंचाएं। 7. संन्यासी का कोई बुरा करे या भला, उसे विरक्त बने रहना चाहिए। जैन सम्प्रदाय में भी इस विरक्तभाव को महत्व दिया गया है। यह बात महावीर के जीवन प्रसंग से स्पष्ट होती है जिसके अनुसार चार से भी अधिक माह तक उनके शरीर पर नाना तरह के प्राणी एकत्र हुए, रेंगते रहे और उन्हें पीड़ा पहुंचाते रहे। 8. संन्यासी को जल छानने के लिए अपने पास एक वस्त्र रखना चाहिए। उक्त तर्कों के आधार पर जैकोबी का यह विश्वास है कि निवृत्ति का आदर्श ब्राह्मणों के धर्म में पहले उदित हुआ और चतुर्थ आश्रम के रूप में अभिव्यक्त
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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