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जैन आगम साहित्य : ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन • 43
मासे मासे उ जो वालो कुसग्गेणं भुंजए। ण सो सुअक्खाय घम्मस्स कलं अध्यई सोलसि।।44।। उत्तराध्ययन, अ० 91 अहां पोम्मं जले जायं नोवलिप्पई वारिणा। एवं अलितं कामेहि तं वयं बूम माहणं।।27।। उत्तराध्ययन, अ० 25। मासे मासे कुसग्गेन बालो भुजेय भोजनं। न सो संखतम्मानं कलं अरधति सोलसिं।।11।। धम्मपद, ब्राह्मणवग्ग। वारिपोक्खरपते व आरग्गेरिव ससयो।
यो न लिम्पति कामेसु तमहं ब्रूम ब्राह्मणं ।।19।। धम्मपद, ब्राह्मणवग्ग। 170.जं मे बुद्धाणुसासंति सीएण फस्सेण वा।
मम लाभु ति पेहाए पयओ तं पदिस्सुणे।।27।। 171. गाथा, 34-351 172. एवं से उदहु अणुत्तरनाणी अणुत्तरदंसी अणुत्तर-णाणदंसणधरे अरहानायपुत्रै भगवं
वैसालिए वियाहिए। त्तिवेमि।।18।। 173.उत्तराध्ययन टीका, पृ० 51 174.अंगप्पभवा जिणभासिया पप्येबुद्ध संवाया।
वधे मुक्खे यह कया छत्तीसम् उत्तरज्झयणा।।-उत्तराध्ययन नियुक्ति।