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________________ 36 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति जिसमें प्राचीनता का पुट है। इस पर भी एक नियुक्ति है जिसे भद्रबाहु की कहा जाता है। एक चूर्णि है और शान्तिसूरि तथा नेमिचन्द्र की संस्कृत टीकाएं हैं। डा० जैकोबी ने इसका जर्मन में अनुवाद किया है। इसका अंग्रेजी अनुवाद 'सैक्रेड बुक्स ऑफ दी ईस्ट' नामक ग्रन्थमाला की पैंतालीसवीं जिल्द में सूत्रकृतांग के अनुवाद साथ प्रकाशित हुआ है। शार्ल कार्पेन्टियर ने अंग्रेजी प्रस्तावना सहित मूल पाठ का संशोधन किया है। भद्रबाहु की उत्तराध्ययन निर्युक्ति के अनुसार इस ग्रन्थ के छत्तीस अध्ययनों में से कुछ अंग ग्रन्थों से लिए गये हैं, कुछ जिन भाषित हैं, कुछ प्रत्येक बुद्धों द्वारा प्ररूपित हैं और कुछ संवाद रूप में कहे गये हैं। 174 संदर्भ एवं टिप्पणियां 1. षट्खण्डागम, पुस्तक- 1, पृष्ठ 60-651 2. कैलाशचन्द्र शास्त्री, जैन साहित्य का इतिहास, भाग-1, पृष्ठ 1-2। 3. जैनसूत्रज, भाग-1, पृष्ठ 1। 4. तदैव, पृष्ठ-2। 5. जैन परम्परा में आज शास्त्र के लिए आगम शब्द व्यापक हो गया है किन्तु प्राचीन काल में यह श्रुत के नाम से प्रसिद्ध था। इसी कारण श्रुतकेवली शब्द प्रचलित हुआ, न कि आगम केवली या सूत्र केवली । 6. बृहत्कल्पभाष्य पीठिका, पृ० 174, आवश्यक चूर्णि, पृ० 108। 7. निरावरणज्ञानाः केवालिनः । तदुपदिष्टं बुद्धयतिशयर्द्धियुक्तगणधरायुस्थ ग्रन्थरचनं श्रुतं भवति। समवायांग सूत्र अ० 6 सूत्र 13 : आगमोदयसमिति, सूरत, बम्बई । गुरुसमीपे श्रुयते इति श्रुतम् अनुयोगद्वारसूत्र, आगमोदयसमिति, सूरत । 8. पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री, जैन साहित्य का इतिहास, पूर्वपीठिका, पृ० 4961 9. पाटलिपुत्र वाचना का वर्णन तित्थोगाली पइन्ना में, हेमचन्द्र कृत परिशिष्ट पर्वन के नौवें सर्ग में तथा स्थूलभद्र की कथाओं में मिलता है । देखें, धर्मघोष कृत ऋषिमण्डलप्रकरण पर पद्ममुन्दिर रचित वृत्ति में, हरिभद्र कृत उपदेशपद की मुनि चन्द्रसूरि रचित वृत्ति में, स्थूलभद्रकथा तथा जयानन्दसूरि कृत स्थूलभद्र चरित्र तथा आवश्यक गाथा । द्र० आवश्यक चूर्णि, 2, पृ० 187। 10. ज्ञातव्य है कि दूसरी और तीसरी शताब्दी ईस्वी ब्राह्मण धर्म के उत्कर्ष और शैव पुनरोद्धार का समय था। शुंग, सातवाहन और कण्व ब्राह्मण राज्य वंश थे। गुप्त वंश वैष्णव था तथा अन्तिम कुषाण शासक शैव था । 11. महावीर का निर्वाण 527 ई०पू० में हुआ था। इसी तिथि से जैन धर्मावलम्बी अन्य घटनाओं की गणना करते हैं और इसे वीर निर्वाण सम्वत् के नाम से पुकारते हैं। 12. वीरस संवच्छरिए महते दुब्भिक्खे काले भट्टा अण्णण्णतो हिण्डियाणं गहण गुणणणुप्पेहाभावाओ विप्पणट्टे, सत्ते पुणौ सुभिक्खे काले जाए महुण्ए महते साधुसमुदए खंदिलायरियप्पमुद्ध संघेण जो अं संभरइति इव संघियं कालियसयं। जम्हा एवं महुराये कयं तम्हा माहूरी वायणा भण्णई – जिनदासमहत्तर कृत नन्दीचूर्णि, पृ० 81
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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