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________________ जैन आगम साहित्य : ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन • 35 छोटा भाई था और प्रवजित हो गया था। एक दिन साध्वी राजुल वर्षा से त्रस्त होकर एक गुफा में चली गई और वस्त्र उतार कर सुखाने लगी। उसी गुफा में रथनेमि तपस्या कर रहा था। वह राजुल को देखकर उस पर आसक्त हो गया। राजुल ने उसे सम्बोधि के सुमार्ग पर लगाया। तेईसवें, केशिगौतमीय अध्ययन में पार्श्वनाथ परम्परा के केशी और गौतम गणधर के सम्वाद का वर्णन है। पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता के प्रकरण में इसकी चर्चा आ चुकी है। प्रवचन माता नामक चौबीसवें, अध्ययन में पांच समिति और तीन गुप्तियों का कथन है। इनको प्रवचन की माता कहा गया है। पच्चीसवें, यज्ञीय अध्ययन में जयघोष की कथा है। विजयघोष नामक ब्राह्मण यज्ञ कर रहा था। जयघोषमुनि भिक्षा के लिए पहुंचे। विजय घोष ने भिक्षा नहीं दी। जयघोष ने कहा कि यज्ञोपवीत धारण करने से कोई व्यक्ति ब्राह्मण नहीं हो जाता और न वल्कल पहनने से तपस्वी हो जाता है। सामाचारी नामक छब्बीसवें अध्ययन में साधुओं की सामाचारी का कथन है। खलुंकीय नामक सत्ताईसवें अध्ययन में गर्ग नामक मुनि की कथा है। मोक्षमार्ग नामक अट्ठाईसवें अध्ययन में मोक्षमार्ग का ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप का वर्णन है। सत्यकाम पराक्रम नामक उनतीसवें, अध्ययन में संवेग, निर्वेद, धर्म, श्रद्धा आदि तिहत्तर द्वारों का कथन है। तीसवें, तपोमार्ग नामक अध्ययन में तप का वर्णन चरणविधि नामक इकत्तीसवें अध्ययन में चारित्र की विधि का कथन है। प्रमाद स्थान नामक बत्तीसवें अध्ययन में प्रमाद का कथन है तथा राग-द्वेष-मोह को दूर करने के उपाय बताये हैं। कर्मप्रकृति नामक तेतीसवें अध्ययन में कर्मों के भेद-प्रभेद तथा उनकी स्थिति बतलाई है। चौतीसवें, लेश्या नामक अध्ययन में छ: लेश्याओं का स्वरूप बतलाया है। __ पैंतीसवें, अनागार मार्ग नामक अध्ययन में संक्षेप में मुनि जीवन का मार्ग बतलाया है। छत्तीसवें, जीवाजीव विभक्ति नामक अध्ययन में जीव और अजीव द्रव्यों का कथन है। __ वादिवेताल शान्तिसूरि के अनुसार उत्तराध्ययन सूत्र का परीषह नामक दूसरा अध्ययन दृष्टिवाद से लिया गया है, द्रुमपुष्पिका नामक दसवां अध्ययन महावीर ने प्ररूपित किया है। कापिलीय नामक आठवां अध्ययन प्रत्येक बुद्ध कपिल ने प्रतिपादित किया है तथा केशिगौतमीय नामक तेईसवां अध्ययन संवाद रूप में प्रतिपादित किया गया है।173 __ इस तरह वर्तमान उत्तराध्ययन सूत्र विविध प्रकरणों का एक संग्रह जैसा है और आचारांग आदि के बाद ही पढ़ने योग्य है। यह एक कथात्मक संग्रह है
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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