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________________ 20 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति अन्तिम वाचना के आधार पर पुस्तक लेखन वलभी में विक्रम सम्वत् 510 मतान्तर से 523 में हुआ। अतएव तदन्तर्गत कोई शास्त्र विक्रम सम्वत् 525 के बाद का नहीं हो सकता।106 जिस अलंकृत रूप में वर्तमान में बारह अंग उपलब्ध हैं उनको देखते हुए उनके रचनाकाल अथवा उनके प्रणेताओं के विषय में कहना दुष्कर है। कुछ अंग पूरी तौर पर पौराणिक हैं तथा गाथाओं की विषय-सामग्री से युक्त हैं। ऐसे अंग चार हैं। नायाघम्मकहाओ, अन्तगडदसाओ, अणुतरोववाइयदसाओ तथा विवागसूयम। इनका निरपेक्ष तथा कालक्रमानुसार विभेदीकरण तभी सम्भव होगा जबकि साहित्यिक तथा पौराणिक साक्ष्यों के बजाय दार्शनिक और धार्मिक विचारों को मानदण्ड बनाया जाये।।07 यह भी उल्लेखनीय है कि अन्तगडदसाओ तथा अणुत्तरोववाइय की मौलिक विषय सामग्री वर्तमान विषय सामग्री से बिल्कुल भिन्न थी। ___ अंग ग्रन्थ108 गणधर कृत कहे जाते हैं, किन्तु उसमें सभी एक समान प्राचीन नहीं हैं। आचारांग के प्रथम और द्वितीय श्रुतस्कन्ध भाव और भाषा में भिन्न हैं। प्रथम श्रृत स्कन्ध द्वितीय से ही नहीं किन्तु समस्त जैनवाङ्मय में सबसे प्राचीन अंश है। उसमें परिवर्तन और परिवर्द्धन सर्वथा नहीं है, यह तो नहीं कहा जा सकता किन्तु उसमें नया सबसे कम मिलाया गया है, यह तो निश्चित ही कहा जा सकता है। वह भगवान का साक्षात उपदेश न हो, तब भी उसके अत्यन्त निकट तो है ही। इस स्थिति में उसे हम विक्रम पूर्व 300 के बाद की संकलना नहीं कह सकते। अधिक सम्भव है कि वह प्रथम वाचना की संकलना है। आचारांग का द्वितीय श्रुत स्कन्ध आचार्य भद्रबाहु की रचना होना चाहिए क्योंकि उसमें प्रथम की अपेक्षा भिक्षुओं के नियमोपनियम के वर्णन में विकसित भूमिका मिलती है। यह विक्रम पूर्व दो शताब्दी के बाद की रचना नहीं कही जा सकती। यही बात सामान्यत: सभी अंगों के विषय में कही जा सकती है। इसका अभिप्राय यह नहीं है कि समस्त साहित्य इस काल में ही लिख लिया गया और कुछ नहीं जोड़ा गया।109 स्थानांग जैसे अंग ग्रन्थ में वीर निर्वाण की छठी शताब्दी की घटना का भी उल्लेख है। भाषा में पंचतन्त्र की गति और विकास है। प्रश्न व्याकरण अंग का जैसा वर्णन नन्दि सूत्र में है उसे देखते हुए उपलब्ध प्रश्न व्याकरण अंग बाद की रचना प्रतीत होती है। वलभी वाचना के बाद कब यह अंग नष्ट हुआ और कब नवीन प्रक्षिप्त हुआ, जानने का कोई साधन नहीं है। ___ दसवां अंग परवर्ती है जिसने कि लुप्त अंग का स्थान ग्रहण किया है।।10 चौथे अंग को पूर्ववर्ती माना जा सकता है क्योंकि इसमें ब्राह्मी के अट्ठारह प्रकारों तथा उत्तराध्ययन के 36 अध्यायों की गणना है।। नन्दिसूत्र, जो कि पर्याप्त परवर्ती रचना है, की भी चर्चा है।112 पांचवां अंग भी आरम्भिक या प्राचीन नहीं माना जा
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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