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________________ जैन आगम साहित्य : ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन • 19 सूत्र में प्रथम आचारांग सूत्र से लेकर अष्टम पूर्व पर्यन्त अंगों को और पूर्वो को तो श्रुत कहा है और नवम आदि शेष छ: पूर्वो को आगम कहा है। भेद का कारण है कि जिससे अतीन्द्रिय पदार्थों का ज्ञान हो उसे आगम कहते हैं। केवल ज्ञान की तरह अतीन्द्रिय पदार्थों के विशिष्ट ज्ञान कराने के कारण ही इन्हें आगम कहते हैं। __ जयधवला के अनुसार जिसमें अल्पाक्षर हों, जो सन्देहोत्पादक न हो, जिसमें सार भर दिया हो, जिसका निर्णय गूढ़ हो, जो निर्दोष हो, सयुक्तिक हो और तथ्ययुक्त हो उसे विद्वान सूत्र कहते हैं। सम्पूर्ण सूत्र लक्षण तो तीर्थंकर के मुख से निकले अर्थ पदों में ही संभव है, गणधर के मुख से निकली रचना में नहीं। वह तो बहुत विस्तृत और विशाल होती है। षट्खण्डागम की कृति अनुयोगद्वार की धवला टीका में वीरसेन स्वामी ने तीर्थंकर के मुखप्रणीत को तो सूत्र कहा है और गणधरदेव के श्रुतज्ञान को सूत्रागम कहा है। क्योंकि वह उन बीज पद रूपी सूत्रों से उत्पन्न होता है। अंगों और पूर्वो को सिद्धान्त भी कहते हैं। जैकोबी आदि विदेशी लेखकों ने अपने लेखों में श्वेताम्बर आगमों का निर्देश सिद्धान्त शब्द से किया है। इस प्रकार अंगों और पूर्वो को आगम, परमागम, सूत्र, सिद्धान्त आदि नामों से पुकारा गया है। बौद्ध पालि त्रिकाय की तीनों वाचना के 100 वर्ष बाद श्वेताम्बर आगम पुस्तकारूढ़ हुए। अत: पालि त्रिकाय पिटक की अनुकृति पर जैनों के आगम भी 'दुवालसंगे गणिपिडगे'100 कहलाये जिसका अर्थ है गणधर का पिटारा। आगमों की तिथि चर्चा अधिकांश जैन तीर्थंकरों की परम्परा पौराणिक होने पर भी जैन साहित्य का आदि स्रोत अंग साहित्य वेद जितना प्राचीन नहीं है, यह सिद्ध हो चुका है। उसे बौद्धपिटक का समकालीन माना जा सकता है। डा० जैकोबी102 का कथन है कि समय की दृष्टि से जैनागम का समय जो भी माना जाये किन्तु उसमें जिन तथ्यों का संग्रह है वह ऐसे नहीं हैं कि इसी काल के हों। इसमें ऐसे तथ्य संग्रहीत हैं जिनका सम्बन्ध प्राचीन पूर्व परम्परा से है।103 जैन ग्रन्थों की कालावधि अधिक अनिश्चित है क्योंकि उनका अध्ययन और सम्पादन उस रूप में नहीं हो पाया जिस रूप में बौद्ध ग्रन्थों का हुआ है। कहा जाता है कि जैनधर्म ग्रन्थों का संकलन सर्वप्रथम ई० पू० चौथी शताब्दी के अन्त या तीसरी शताब्दी के आरम्भ में किसी समय हुआ था।105 आगम शब्द व्यक्ति वाचक नहीं है किन्तु अनेक व्यक्ति कृत अनेक ग्रन्थों का समुदाय वाचक है। आगम की रचना का कोई एक निश्चित काल नहीं है। भगवान महावीर का उपदेश विक्रम पूर्व 500 वर्ष में शुरू हुआ। अतएव उपलब्ध किसी भी आगम की रचना का उसके पहले होना सम्भव नहीं है और दूसरी और
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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