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________________ 284 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति अन्तर्जीवन अगर असुरक्षित है तो बाहर की सुरक्षा का कोई अर्थ नहीं है। बाहर के हजारों शत्रुओं को जीतने की अपेक्षा आन्तरिक शत्रुओं पर प्राप्त की जाने वाली विजय ही वास्तविक विजय है। नमिराज पूर्ण अनासक्त हुए-उत्तराध्ययन एस० बी०ई०, अ० 9, पृ० 35-411 187. वही, 20 : महानिर्ग्रन्थीय। 188. कुरुक्षेत्र के इषुकार नगर में भृगुराजपुरोहित अपनी पत्नी यशा के साथ रहते थे जिनके दो सुन्दर अल्पवयस्क पुत्रों ने दीक्षा ग्रहण कर ली। यह देख माता-पिता ने भी श्रमण संयम ग्रहण कर लिया। इस सम्पन्न पुरोहित का त्यक्त धन परम्परानुसार राज्यकोष में आने लगा। यह सूचना पाकर रानी कमलावती ने राजा को समझाया “जीवन क्षणिक है।" इस क्षणिक जीवन के लिए तुम धन संग्रह क्यों कर रहे हो? जिसे पुरोहित छोड़ रहा है उसे तुम क्यों स्वीकार कर रहे हो? यह तो दूसरों का वमन चाटने के समान है। जिस प्रकार मांस खण्ड पर चील, कौए और गीध झपटते हैं, उसी प्रकार धन लोलुप धन पर झपटते हैं। अत: इस क्षण नश्वर धन को त्याग कर शाश्वतधन को खोजें। इस प्रकार राजा रानी ने श्रमण दीक्षा स्वीकार कर ली।-उत्तराध्ययन, एस०बी०ई०, अ० 14, पृ० 61-691 189. काम्पिल्य नगर का राजा संजय शिकार के लिए गया हआ था। उसकी सेना ने जंगल हिरणों को एक एक कर बींधा। उनका पीछा करते हुए राजा लता मण्डप में गया जहां मुनि गर्दमालि तपस्यारत थे। मुनि ने भयभीत राजा से कहा- “राजन! मेरी ओर से तुम्हें अभय है। पर तुम भी अभय देने वाले बनो। जिनके लिए तुम यह अनर्थ कर रहे हो, वह स्वजन एवं परिजन कोई भी तुम्हें बचा नहीं सकेंगे।" यह उपदेश पाकर राजा मुनि बन गया। वही, अ० 18, पृ० 80। 190. वही, पृ० 481 191. उत्तरज्झयणाणि 11/21-वृहद्वृत्ति के अनुसार वासुदेव के शंख का नाम पांचजन्य, चक्र का सुदर्शन और गदा का नाम कौमुदकी है। लोहे के दण्ड विशेष को गदा कहते हैं। 192. उत्तराध्ययन, 11/231 193. वही, 22/10-24| 194. उत्तरज्झयणाणि, सटिप्पण, पृ० 432। यह रत्न हैं (1) सेनापति, (2) पुरोहित, (3) गाथापति, (4) गज, (5) अश्व, (6) मनचाहा भवन निर्माण करने वाला वद्धर्कि बढ़ई, स्त्री, (8) चक्र, (9) छत्र, (10) चम, (11) मणि, (12) जिससे पर्वत शिलाओं पर लेख या मण्डल अंकित किये जाते हैं वह काकिणी, (13) खड्ग, तथा (14) दण्ड। 195. उत्तराध्ययन, अध्या. 11, 18, 21 तथा 221
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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