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________________ 282 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति वर्णित विषय के लिए द्र० रतिलाल मेहता, प्री बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० 107 आदि। 136. वही, 21/4 शान्त्याचार्य ने गवाक्ष का अर्थ सबसे ऊंची चतुरिका किया है-वृहद्वृत्ति, पत्र 451। 137. उत्तराध्ययन, 13/13-14। 138. वही 139. कल्पसूत्र एस० बी०ई० पृ० 242/61। 140. वही, पृ० 242/621 141. राजा के आभूषणों में गले में लटका 18 लड़ का हार, नौ लड़ का हार, तीन लड़ का हार, मोती का हार, एकावली बाहुल्य, कुण्डल आदि आभूषण थे। 142. कल्पसूत्र एस० बी०ई०, पृ० 2421 143. वही। 144. वही, पृ० 280/641 145. वही, महावीर का जीवन चरित, 621 146. उत्तराध्ययन, 15/9: आवश्यक नियुक्ति, गाथा 198 के अनुसार भगवान ऋषभदेव ने चार वर्ग स्थापित किये थे-(1) उग्र आरक्षक सेना, (2) भोग-गुरुस्थानीय, (3) राजन्य समवयस्क अथवा मित्रस्थानीय, तथा (4) क्षत्रिय-अन्य व्यक्ति। भोगिक का अर्थ सामन्त भी होता है। शान्त्याचार्य इसका अर्थ राजमान्य प्रधान पुरुष करते हैं। नेमिचन्द्र ने सुबोधा में विशिष्ट वेशभूषा का भोग करने वाले अमात्य आदि, अर्थ किया है। 147. द्र० उत्तराध्ययन सटिप्पण, पृ० 4351 148. जैन कल्पसूत्र, 128 और निर्यावलि सूत्र, पृ० 27 वारेन द्वारा सम्पादित द्र० मोहनलाल मेहता, जातक कालीन भारतीय संस्कृति, पृ० 60। 149. अभिषिक्त राजन्य:-पाणिनि. 6/2/34: कौटिल्य ने भी राजशब्दोपजीविनः कह कर उन संघों की ओर इंगित किया है जिसमें राजा उपाधि संघीय संगठन का मूलाधार थी। 150. एकैक एवं मन्यते अहं राजा अहं राजेति-ललित विस्तार, 3/23। 151. द्र० सैक्रेड बुक्स आफ दी ईस्ट, जि० 45, पृ० 339। 152. वही, 2/1/13 पृ० 3391 153. उग्र तथा भोग क्षत्रिय थे। जैन परम्परा के अनुसार ऋषभदेव ने जिन्हें कोतवाल के पद पर नियुक्त किया था उनके वंशज उग्र थे जबकि भोग उनके वंशज थे जिन्हें ऋषभदेव ने आदरणीय तथा सम्मान का पात्र माना था। द्र० जैकोबी, सैक्रेड बुक्स आफ दी ईस्ट, पृ० 71। लिच्छवि तथा मल्लकी काशी और कोसल के प्रमख थे। रामायण में वर्णित इक्ष्वाक वंश के यह वंशज थे। पूर्वी भारत में इस प्रजाति ने प्रमुख शक्ति बनकर अनेक शताब्दियों तक राज्य किया। ऋषभ को कोसलीय कौशलिक कह कर पुकारा गया है क्योंकि वह कोसल अथवा अयोध्या में उत्पन्न हुए थे। मल्लकी, मल्लीनाथ की सन्तान थे। द्र० कल्पसूत्र एस०बी०ई०, पृ० 280-81। इसी प्रकार काशी और कोसल के अट्ठारह संघीय राजाओं जिनमें नौ मल्लकी व नौ लिच्छवी थे, ने महावीर के प्रयाण दिवस पर 'पोषघ के दिन दीपमालिका की। द्र० कल्पसूत्र, पृ० 266 154. सहस्राक्ष वज्रपाणि, पुरन्दर-उत्तराध्ययन, गाथा 23 चूर्णि के अनुसार इन्द्र के पांच सौ देवमन्त्री होते हैं। राजा मन्त्री रूपी आंखों से देखता है अर्थात् उनकी दृष्टि से अपनी नीति निर्धारित करता है, इसलिए इन्द्र सहस्राक्ष है। 155. उत्तराध्ययन, गाथा 13, पृ० 117-18।
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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