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________________ 256 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति 94. फिक, पूर्वोक्त, पृ० 3241 95. मज्झिम निकाय - III न लाभी अन्नरस पाणस्स, पृ० 169 70 तथा अंगुत्तर निकाय - II, पृ० 851 96. व्यवहारभाष्य, 2/37:3/921 97. हार्नर, दी एज आफ डिसिप्लिन-1, अनुवाद सैक्रेड बुक्स आफ दी बुद्धिस्ट में आई बी० हार्नर द्वारा जि० 11, पृ० 1751 98. विनयपिटक, जि० 4,6 सं० एच० ओल्डनवर्ग, अनु० आईबी० हार्नर - सैक्रेड बुक्स आफ दी ईस्ट बुद्धिस्ट, यद्यपि उपालि नामक हज्जाम भिक्षु बन गया था फिर भी भिक्षुणियां उसे हीनकुल में उत्पन्न कह कर निन्दित करती थीं जिसका पेशा लोगों का सिर दबाना और गंदगी साफ करना था 'कसवतो मलभज्जनो नि हीन जच्चो', To 3081 99. दीर्घनिकाय, 3, 951 100. आचारांगसूत्र : तु० दीर्घनिकाय, पृ० 92-93 101. गौतमधर्मसूत्र, 58, जीर्णान्यूनपानच्छत्तवासः कूर्चानि । द्विजाति की सेवा, कृषि, पशुपालन व शिल्प तथा वार्ता शूद्र का पारम्परिक अधिकार था । द्र० अर्थशास्त्र शामाशास्त्री, सं० 6, अ० 3, पृ० 71 102. जातक, 1, पृ० 3721 103. विनयपिटक ओल्डन वर्ग-1, पृ० 2201 104. वसिष्ठ धर्म सूत्र, 24 । दीर्घवेरमसूया चासत्यं ब्राह्मणदूषणं, पैशून्य निर्दयत्वं च जानीयात शूद्रलक्षणम् ॥ 105. द्र० शूद्रों का प्राचीन इतिहास, पृ० 1241 106. मज्झिमनिकाय, 1, पृ० 211: ।। पृ० 182-84: संयुक्त निकाय, -1, 99, विनयपिटकII, पृ० 239, अंगुत्तर निकाय, पृ० 202 : दीर्घ निकाय - III, पृ० 80-87 उल्लेखनीय है कि महावीर ने भी अपने श्रमणों से कहा कि धर्म का उपदेश जैसा सम्पन्न को दो वैसा ही तुच्छ को दो, जैसा तुच्छ को दो वैसा ही सम्पन्न को दो । आयारो, 2/174: द्र० जैन दर्शन मनन और मीमांसा, पृ० 102 | 107. जातक, III, पृ० 194, 4, पृ० 3031 108. वही, पृ० 2001 109. वही। 110. उत्तरज्झयणाणि सानु० अ० 11। 111. लाइफ एज डिपिक्डेड इन जैन कैनन्स, पृ० 1071 112. उत्तराध्ययन, अ० 12। 113. आपस्तम्ब धर्मसूत्र-II, 8 / 18 / 2 : बौधायन धर्मसूत्र - II, 2 / 3 / 1 । वसिष्ठधर्मसूत्र 14,2,4 114. आचारांगसूत्र - II, 1, 2,21 115. विनयपिटक, III, 184-85: पृ० 80, 1771 116. बोस, सोशल एण्ड रुरल इकानॉमी आफ नार्दर्न इण्डिया, 2, पृ० 4231 117. ठाणांग, 10, 712 : परिजुना, रोगिणी तीआ, रोसा और अणाढिता पव्वज्जा । 118. सूत्रकृतांग-II, 2/541 119. वही, 7/251 120. साल्मस आफ दी ब्रेथरेन, 17, पृ० 21-22 121. कारभेदको चोरो- चोरो कसाहते कदण्ड कम्मको इणामिको- दासो । विनयपिटक, 1, -
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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