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________________ 244 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति है। जाति जुगुप्सितों में पाण, डोम्ब और मोरत्तिय का उल्लेख है। मातंगों को जाति का कलंक समझा जाता था।6 समाज व्यवस्था में न्याय की प्रतिष्ठा सदा ही मूल्यवान है जिसकी मांग है सामाजिक समता किन्तु वर्ण व्यवस्था, समता देने में असमर्थ रही। समता का आदर्श विधानात्मक न होकर अनिवार्य नैतिक मूल्य है और इसीलिए सामाजिक न्याय या धर्म की अर्थवत्ता लिए है किन्तु ब्राह्मण परम्परा ने इस परिप्रेक्ष्य में इसे सार्थक नहीं किया। उत्तराध्ययन में चित्त और सम्भूत नामक दो मातंग दारकों की कथा आती है। दोनों रूपवान थे तथा गंधर्व विद्या में निपुण्ण थे। एक बार मदनमहोत्सव के अवसर पर दोनों भाइयों की टोली गाती बजाती बनारस में होकर निकली, जिसने सभी को मुग्ध कर दिया। लेकिन ब्राह्मणों को बहुत ईर्ष्या हुई। परिणामत: चित्त और सम्भूत को जातिवाद का सहारा लेकर बहुत यातना दी गई।87 ___पाणों को चाण्डाल भी कहा जाता था। यह गृहविहीन आकाश की छाया में निवास करते थे।88 यह प्रमुख रूप से श्मशान में मुर्दे ढोने का काम करते थे।89 जल्लाद प्रायः इसी वर्ग में से होते थे। डोमों के कच्चे घर होते थे, वे गीत गाकर और सूप आदि बनाकर अपनी आजीविका चलाते थे। उन्हें कलहशील, रोष करने वाले और चुगलखोर बताया गया है। यह किषिक वाद्यों के चारों ओर तांत लगाते और वध स्थान को जाने वालों के आगे बाजे बजाते थे। सोवाग श्वपच कुत्तों का मांस पकाकर खाते और तांत की बिक्री करते थे। वरुड़ रस्सी बंटकर आजीविका चलाते थे। जैन ग्रन्थ सत्रकृतांग में चाण्डाल की गणना शबर, द्रविड कलिंग और गन्धारों के साथ की गयी है। हरिकेश और लुहारों की भी जाति जुगुप्सितों में गिनती की गयी है।2 जाति जुगुप्सितों को अस्पृश्य माना जाता था। क्योंकि यह जातियां मुख्यत: शिकारी और बहेलिये के रूप में जीवन बिता रही थीं और इनकी तुलना में ब्राह्मण समाज के लोग धातुकर्म और कृषि का ज्ञान रखते थे तथा नगर जीवन का विकास कर रहे थे। बौद्ध साहित्य में इन जातियों के हीन संस्कार और तज्जन्य उनकी दुरावस्था का वर्णन इन शब्दों में किया गया है- “यदि वह मूढ़, मनुष्य की कोख से जन्म लेता है तो वह नीच जाति के घर जाता है, जैसे चाण्डाल, निषाद, वेण, रथकार और पुक्कस। इनका पुनर्जन्म घुमक्कड़ और अकिंचन के रूप में अभावग्रस्त जीवन बिताने के लिए होता है। इन्हें पेटभर भोजन और वस्त्र शायद ही मिल पाता है।''94 कर्म और शिल्प से जुगुप्सित स्पृश्य जातियों में मयूर पोषक, कुक्कुटपोषक, नट, लंख, व्याघ्र, मृगलुब्ध, वागुरिक, शौकरिक, मच्छीमार, रजक आदि कर्मजुगुप्सित तथा चर्मकार, पटवे, नाई, धोबी आदि की शिल्प जुगुप्सितों में गणना की गयी है। बौद्ध ग्रन्थों में बढ़ई और भंगी का कार्य हीन कोटि का समझा जाता था। नलकार बांस का काम करने वाले कुम्भकार, पेसकार बुनकर चम्मकार
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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