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226 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
“आलाप न करना, आनन्द।" बातें करने वाले को कैसा करना चाहिए?
स्मृति को संभाले रखना चाहिए। 19. उत्तराध्ययन सूत्र साध्वी चन्दना, पृ० 4661 20. श्री जैन सिद्धान्त बल संग्रह, जि० 6, पृ० 228-230 तथा उत्तरज्झयणाणि सानु०,
19/14 तथा 31/18, पृ० 243, 436 तथा उत्तरज्झयणं सटिप्पण, पृ० 298 तु० समवायांग, समवाय 9। वृहद्वृत्ति, पत्र 616 में इस सूची में कुछ अन्तर है : क्यददक्क मिंदियाणं च, निमाहो भावं करणसच्चं च। खमयाविरागयाविय, मणमाईणं णिरोहो य।। तह मारणंतिय हियासणया ए ए णगारगुणा।। - तु० मूलाचार, 1/2-3 : प्रवचनसार, 3/8
8, तथा अनागार धर्मामृत, 9/84,851 21. उत्तराध्ययन, 19/25-301 22. उत्तरज्झयणाणि सानु० आमुख अ० 24, पृ० 321। 23. मूलाराधना, आश्वास 6, श्लो० 11851 24. उत्तराध्ययन, 24/3। मन, वाणी और शरीर के गोपन को उत्सर्ग या विसर्जन को गुप्ति
तथा सम्यक् गति; भाषा; आहार को एषणा; उपकरणों का ग्रहण निक्षेप और मलमूत्र आदि
के उपसर्ग को समिति कहा गया है। 25. उत्तराध्ययन, 24/1, पृ० 3251 26. वही, 24/51 27. वही, 24/61 28. वही, 24/81 29. वही। 30. वही, 24/91 31. वही, 24/101 32. उत्तरज्झयणाणि सानु० 24/11 पृ० 3261 33. वही, 24/12, पृ० 327। 34. वही, 24/131 35. वही, 24/141 36. वही, 24/151 37. वही, 24/171 38. वही, 24/181 39. मूलाराधना, 6/1200। 40. वही, 6/12021 41. उत्तरज्झयणाणि, अ० 24, आमुख पृ० 3221 42. मूलाराधना, 6/11851 43. उत्तराध्ययन, 24/20-21। 44. वही, 24/22-23। 45. वही, 24/24-251 46. आचारांग सूत्र आत्माराम जी महाराज, द्वि० श्रुत० अ० 11, पृ० 13191 47. डा० सागरमल जैन, जैन नैतिक दर्शन की मनोवैज्ञानिक समीक्षा, तुलसी प्रज्ञा, द्वितीय