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________________ जैन नीतिशास्त्र का स्वरूप. 225 रखा गया है। जिससे व्यक्ति आचार संहिता को बन्धन रूप न मानकर मित्रवत स्वीकार कर सके। विचारक आगस्टाइन की भांति जैन आचार शास्त्री यह कहते है कि तुम केवल प्रेम करना सीख लो, शेष बातों की चिन्ता मत करो। जैन आचार शास्त्र में अहिंसा को धर्म का साधन और साध्य दोनों ही रूपों में स्वीकार किया गया है। इसी से यह सार्वभौम एवं सनातन है। संदर्भ एवं टिप्पणियां 1. उत्तरज्झयणाणि सानु०, 21/11 पृ०2791 2. वही, 21/12, पृ० 279। 3. सूक्ष्मा न प्रतिपीडयन्ते प्राणिनः स्थूलमूर्तयः। ये शक्यास्ते विवय॑न्ते का हिंसा संयतात्मनः। द्र० जैनधर्म, पृ० 161 4. एस० गोपालन, जैन दर्शन की रूपरेखा, पृ० 1451 5. द्र० टी०जी० कालघटगी, जैन व्यू ऑफ लाइफ, पृ० 163। जैन दर्शन की रूपरेखा, प्र० 1461 7. इन्हें इस प्रकार भी कहा गया है- अनुविचिन्त्य भाषणता, क्रोधविवेक, लोभविवेक, भयविवेक, हास्यविवेक - द्र० उत्तराध्ययन सूत्र साध्वी चन्दना, पृ० 4661 8. उत्तराध्ययन, साध्वी चन्दना, टिप्पण, पृ० 466। 9. वही 10. जेसि विसयेसु रदी तेसिं दुक्खं पियाण सवभावं। जदि लं ण हि सवभावं वावारोणत्यि विसयत्थं।। -उत्तरज्झयणाणि सानु० 21/13 पृ० 279 तथा 35/3, पृ० 493। उत्तरज्झयणाणि सानु०, अध्य० 16 वम्भचेरसमाहिठाणं, पृ० 199-209। स्थानांगसूत्रम् (ठाणं), लाडनूं संस्करण 9/3-4, पृ० 845-471 स्थानांग वृत्तिकार ने एक के बाद एक आने वाले इन काम विकारों का उल्लेख किया है जिससे उन्माद आदि रोग ही उत्पन्न नहीं होते अपितु व्यक्ति मृत्यु द्वार तक जा पहुंचता है। यह हैं - काम के प्रति अभिलाषा, उसको प्राप्त करने की चिन्ता, उसका सतत् स्मरण, उसका उत्कीर्तन, उद्वेग, प्रलाप, उन्माद, व्याधि, जड़ता या अकर्मण्यता तथा मृत्यु। स्थानांगवृत्ति, पत्र 423-241 13. समवायांग, समवाय 9/1-81 14. उत्तराध्ययन में जो दसवां स्थान है वह स्थानांग और समवायांग का आठवां स्थान है। अन्य स्थानों का वर्णन समान है। केवल उत्तराध्ययन का पांचवां स्थान शेष दो में नहीं है। 15. समवायांग में इसके स्थान पर - निर्ग्रन्थ स्त्री समुदाय की उपासना न करे - ऐसा पाठ है। 16. दक्षस्मृति, 7/31-33: द्र० उत्तरज्झयणाणि सानु० अ० 16 आमुख पृ० 197 17. वही। 18. उत्तरज्झयणाणि सानु० 35/4,5,6,71 तु० दीर्घनिकाय महापरिनिवार्ण सुत्त 2/3 जिसके अनुसार बुद्ध से आनन्द ने पूछा - भंते । स्त्रियों के साथ कैसा व्यवहार करेंगे? "अदर्शन, आनन्द।" "दर्शन होने पर भगवान कैसा वर्ताव करेंगे'?
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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