SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1. अक्रियावादी 2. अज्ज 3. अतिथि संविभाग 4. अदत्तादान 5. अन्तेवासी 6. अनवस्थाप्य पारिभाषिक शब्दावली 7. अनर्थदण्ड विरमण 8. अनागार 9. अनाग्रह 10. अनाश्रय 11. अनुद्घात्य 12. अनुपेक्षा 13. अनिर्धारि 14. अपलाप 15. अवम चेलिक 16. अवग्रह 17. अर्हन : आजीवक संप्रदाय के संस्थापक पूरण कश्यप का मत अक्रियावाद कहलाता है। इनके अनुसार आत्मा नामक कोई तत्व नहीं है । इस दृष्टि से बौद्ध भी अक्रियावादी हैं क्योंकि अनात्मवादी हैं। जैनमत अक्रियावाद को आदर नहीं देता। : आर्या अथवा आर्यिका, जैन साध्वी के लिए प्रयुक्त । : जैन गृहस्थ अपनी आधिकारिक वस्तु में से सदैव अतिथि का उचित भाग रखे । : अस्तेयव्रत । : संघ का नियमित, पुष्टिप्राप्त, परिवीक्षित नव श्रमण। : संघ से अस्थायी निष्कासन तथा तपस्यापूर्वक रहने पर पुनर्दीक्षा । : समस्त पापपूर्ण प्रवृत्तियों से निवृत्त होना । : बौद्ध श्रमण। : जैन अनेकान्त दर्शन । नए कर्म फलित न हों, कर्म प्रभाव उत्पन्न न हो । : गुरु प्रायश्चित या महादण्ड । : चिन्तन । : जो श्रमण उपाश्रय से बाहर अरण्य आदि में शरीर त्यागे । : अविश्वास । : तीन वस्त्र तक रखने वाला श्रमण अवम चेलिक है। वह कटि से घुटने तक का वस्त्र पहनता है। : वसति या रहने का स्थान । : आर्हत संस्कृति तथा धर्म का अनुपालक अर्हन कहलाता है । अर्हन का वास्तविक अर्थ अरिहन्त अर्थात इन्द्रियजयी
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy