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________________ 214 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति लाने भेजना, अर्थात् व्रत के अन्तर्गत स्वयं रह कर दूसरे से अतिक्रमण कराना।213 (ब) प्रेष्यप्रयोग-सेवक को आदेश द्वारा निर्धारित सीमा से बाहर भेजना।214 (स) शब्दानुपात-शब्द ध्वनि द्वारा निर्धारित सीमा से बाहर गये निश्चित व्यवसाय में लगे व्यक्तियों को संकेत देना।215 (द) रूएपानुपात-हावभाव के संकेत द्वारा ऐसे व्यक्तियों को सावधान करना।216 (य) पुद्गलप्रक्षेप-किसी वस्तु ढेला आदि द्वारा निर्धारित सीमा से बाहर गये व्यक्ति को संकेत भेजना।217 (3) अनर्थदण्ड विरमण अपने कुटुम्ब अथवा स्वयं के जीवन निर्वाह के निमित्त होने वाले अनिवार्य साक्ष्य अर्थात् हिंसा पूर्ण व्यापार व्यवसाय के अतिरिक्त समस्त पापपूर्ण प्रवृत्तियों से निवृत्त होना अनर्थदण्ड विरमण व्रत है। अनर्थदण्ड विरमण से विशेष रूप से अहिंसा एवं अपरिग्रह का पोषण होता है। उपासकदशा तथा श्रावक प्रज्ञप्ति अनर्थदण्ड के चार प्रकार स्वीकार करते हैं। जब कि अकलंक देव, कार्तिकेय तथा समन्तभद्र ने अनर्थदण्ड के पांच प्रकार स्वीकार किये हैं218 (1) अपध्यान-छिद्रान्वेषण, परहानि की कामना, परस्त्री लोलुपता तथा अन्य के झगड़े में रुचि लेना इसके अन्तर्गत हैं।219 (2) पापोपदेश-दासों का व्यापार, पशुओं का व्यापार। बधिक को शिकार की सूचना देना तथा हिंसात्मक कार्यों का परामर्श देना, इसके अन्तर्गत आते हैं।220 (3) प्रसादचरित्र-भूमिखनन, प्रस्तरछेदन, जलसिंचन, अग्नि प्रज्वलन तथा हवा करना आदि।221 (4) हिंसादान-विष, कंटक, शस्त्र, अग्नि, रस्सी, कोड़ा, बेंत आदि प्रदान करना।222 (5) दु:श्रुति-काम कथाओं का कथन व श्रमण।223 अनर्थदण्ड व्रत के पांच अतिचार हैं224_(1) कान्दर्प-लम्पटतापूर्ण भाषण, (2) कौतुकुस्य-गर्हित या गोपनीय भाषण, (3) मौखर्य-अनर्गल प्रलाप, (4) असमीक्ष्याधिकरण-बिना सोचे कार्य करना तथा (5) उपभोगाधिक्य-प्रमोद की अति करना।
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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