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________________ 198 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति दिवस सम्बन्धी अतिचारों, दोषों की चिन्तना एवं आलोचना करनी चाहिए | 130 तदनन्तर रात्रि कालीन स्वाध्याय करना चाहिए। रात्रि के चतुर्थ प्रहर में स्वाध्याय इस प्रकार किया जाना चाहिए कि उसकी आवाज से गृहस्थ जाग न जायें | 31 चतुर्थ भाग का चतुर्थ प्रहर शेष रह जाने पर पुनः कायोत्सर्ग करना चाहिए एवं रात्रि सम्बन्धी अतिचारों की चिन्तना एवं आलोचना करनी चाहिए । वर्षावास जैन आचार शास्त्र के अनुसार मुनियों का वर्षावास चातुर्मास लगने से लेकर पचास दिन व्यतीत होने तक कभी भी प्रारम्भ हो सकता है, अर्थात् आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी से लेकर भाद्रपक्ष शुक्ला पंचमी तक किसी भी दिन आरम्भ हो सकता है । 132 सामान्यतः चातुर्मास आरम्भ होते ही जीवजन्तुओं की उत्पत्ति को ध्यान में रखते हुए मुनि को वर्षावास कर लेना चाहिए । परिस्थिति विशेष की दृष्टि से उसे पचास दिन का समय और दिया गया है। इस समय तक उसे वर्षावास अवश्य कर लेना चाहिए। 133 वर्षावास में स्थित श्रमणों को चार ओर पांच कोस तक ही गमनागमन की क्षेत्र सीमा रखना कल्प्य है। 34 हृष्टपुष्ट, आरोग्ययुक्त एवं बलवान श्रमण को दूध-दही, मक्खन, घी, तेल आदि रसविकृत्तियां बार-बार नहीं लेनी चाहिए | 135 इस संदर्भ में तीन बातें अत्यन्त आवश्यक हैं- (1) पाणिपात्र भिक्षु को तनिक भी पानी बरसता हो तो भक्तपान के लिए बाहर नहीं निकलना चाहिए तथा भोजन उस दशा में कदापि नहीं करना चाहिए जब तक शरीर पूरी तरह सूखा न हो। 136 (2) पर्यूषणा के बाद अर्थात् वर्षाऋतु के पचास दिन व्यतीत होने पर श्रमण श्रमणी के सिर पर गाय के बाल जितने भी केश नहीं होने चाहिए। बालों को कैंची, उस्तरा या लोंच द्वारा निकाल देना चाहिए | 137 (3) पर्यूषण के दिन परस्पर क्षमायाचना द्वारा उपशमवाद की वृद्धि करनी चाहिए | 138 संलेखना अथवा समाधिमरण जो विषयों में आसक्त होते हैं, वह अज्ञानी मृत्यु से डरते हैं और कालमरण से मरते हैं। जो विषयों में अनासक्त होते हैं तथा मृत्यु से निर्भय रहते हैं, वह ज्ञानी पण्डित मरण से मरते हैं । मृत्यु का समीप आना जानकर ज्ञानी भोजन में संकोच करता हुआ शरीर को समाहित करता हुआ शांत चित्त से शरीर का परित्याग करता है। इसी का नाम पण्डित मरण या समाधिमरण है।
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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