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________________ 196 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति (4) प्रतिक्रमण मानसिक पाप निवृत्ति के लिए जो आत्म आलोचन निन्दा की गर्ध नामक क्रिया गुरु के समक्ष गर्दा की जाती है तथा गुरु के समक्ष जिन पापों की स्वीकृति या आलोचना की जाती है वह प्रतिक्रमण कहलाती है।109 प्रतिक्रमण दिन में, रात में, पाक्षिक, चतुर्मासिक अथवा वार्षिक अथवा जीवन पर्यन्त क्रियाओं में असावधानी के प्रायश्चित स्वरूप किया जा सकता है।1० प्रतिक्रमण मिथ्यादृष्टि आत्म नियन्त्रण के अभाव, वासनाओं तथा अपवित्र क्रियाओं के लिए किया जाता है। प्रतिक्रमण करते समय मन में अभिमान की भावना नहीं रहनी चाहिए।12 गुरु के समक्ष अपराधों की स्वीकृति में कदापि विलम्ब नहीं होना चाहिए।113 पाप स्वीकृति भाव प्रतिक्रमण है और प्रतिक्रमण सूत्र का संगायन द्रव्य प्रतिक्रमण है। यह दोनों प्रतिक्रमण साथ साथ किये जाते हैं।114 (5) प्रत्यास्थान प्रत्यास्थान का अर्थ है पापमय प्रवृतियों से बचने का पूर्ण दृढ़ संकल्प। जहां प्रतिक्रमण भूतकाल के पाप से सम्बन्धित है वहीं प्रत्यास्थान भविष्य की गतिविधियों से सम्बन्धित है। 5 मूलाचार16 के अनुसार प्रत्यास्थान दस प्रकार के उपवासों से सम्बन्धित है। (1) समय से पूर्व ही उपवास रखना। (2) समय के उपरान्त उपवास रखना। (3) क्षमता के अनुसार उपवास रखना। (4) उचित समय पर उपवास रखना। (5) तारा समूह पर केन्द्रित उपवास रखना। (6) अपनी इच्छा से उपवास रखना। (7) अन्तराय कालों में उपवास करना। (8) जीवन पर्यन्त भोजन त्याग का व्रत करना। (9) पर्वत आदि को पार करते समय व्रत करना। (10) किसी उददेश्य से व्रत करना। (6) कायोत्सर्ग कायोत्सर्ग काया के प्रति अनासक्ति का प्रतीक है।17 कायोत्सर्ग के प्रति यह
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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