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________________ ___ 174 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति का धर्म मन का धर्म है और प्रत्येक व्यक्ति से यह आशा की जाती है कि वह अपने स्वार्थ के पीछे किसी जीव को सताने के भाव अपने चित्त में न आने दे। अहिंसा को व्यवहार्य बनाने के लिए हिंसा के द्रव्य हिंसा और भावहिंसा दो भेद किये गये हैं। उसको गृहस्थ की अहिंसा और साधु की अहिंसा इन दो भागों में विभक्त किया गया है। इनकी सीमाएं निर्धारित करके इन्हें फिर अन्य अनेक भेदों में विभक्त किया गया है। भगवान ने हिंसा अहिंसा के विस्तृत विवेचन द्वारा यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक मन में मोह रहता है, तब तक हिंसा का साम्राज्य रहता है। अहिंसा न अव्यवहार्य है और न वह कायरता एवं निर्बलता की जननी ही है। अहिंसा के क्षेत्र में वैचारिक हिंसा के त्याग की बहुत आवश्यकता है। अल्पवचन प्रियकारी और हितकारी बोलने पर बहुत सी आपत्तियों से बचा जा सकता है। अहितकारिणी बातों के द्वारा अशुभ एवं अहितकर वातावरण तैयार होता है। जिसके विषय में यह वार्तालाप होता है, उसके प्रति अशुभ एवं स्थूल लहरियां भेजी जाती हैं तथा इनके द्वारा व्यक्ति स्वयं भी अपने चारों ओर अशुभ लहरियों के कम्पनों का जाल बुन लेता है। इसी कारण जैन धर्म में मौन रहने पर सर्वाधिक बल दिया गया है। व्यक्ति को दूसरे के विषय में निर्णय देने का अधिकार नहीं है न ही व्यवस्था में अनुचित हस्तक्षेप का। यही कारण है कि जैन मुनि मौन धारण करते हैं। मौन अहिंसा की पहली सीढ़ी है। ___ चरित्र के दो रूप हैं-एक है प्रवृतिमूलक और दूसरा है निवृतिमूलक। इन दोनों ही चरित्रों का प्राण है अहिंसा और उसके रक्षक हैं सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। जैन धर्म जब अहिंसा परमोधर्म: की ध्वजा लेकर बढ़ता है तब वह अहिंसा की सैद्धान्तिक व्याख्या को ही पर्याप्त नहीं मानता है, वह इसके व्यावहारिक प्रयोग में उसके वास्तविक महत्व का दर्शन करता है। अहिंसा वस्तुः साधन भी है और साध्य भी। मनसा, वाचा, कर्मणा अहिंसक हो जाना जीवन की चरम उपलब्धि है। जो केवल व्यक्तिसाध्य है, लोक साध्य नहीं हो सकता है। अहिंसापूर्ण आचरण के द्वारा जीवन शुद्ध बनाता है और विचारों में पवित्रता आती है। जीवन शुद्धि, आचार और विचार, आहार और विहार सभी क्षेत्रों में अहिंसा के व्यवहार द्वारा ही सम्भव हो सकती है। जैन धर्म की मान्यता है कि व्यक्ति का जैसा आहार होगा, उसके विचार और व्यवहार भी उसी प्रकार के होंगे। यदि आहार हिंसा द्वारा निष्पन्न हुआ है तो विचार भी हिंसक होंगे तथा व्यवहार भी निर्दयतापूर्ण होगा। अहिंसा दो प्रकार की होती है-एक कषाय से अर्थात् जानबूझ कर और दूसरी अयत्राचार या असावधानी से होने वाली। जब मनुष्य क्रोध, मान, माया या लोभ
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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