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________________ 152 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति (2) कायाक्लेश तथा केशलोंच दशवैकालिक तथा मूलाराधना के अनुसार कायः क्लेश संसार विरक्ति का हेतु है । वीरासन, उकडू आसन, तथा केशलोंच कठिन - अनशन, कायोत्सर्ग, तप व संलेखना इसके भाग हैं। कायः क्लेश से निर्लेपता, पश्चात कर्मवर्जन, पुरः कर्मवर्जन, तथा कष्ट सहिष्णुता जैसे सद्गुण प्राप्त होते हैं । 342 कल्पसूत्र में कहा गया है कि संवत्सरी के पूर्व लोंच अवश्य करना चाहिए। उसकी व्याख्या में लोंच करने के नौ हेतु बताये हैं। 343 राग आदि के निराकरण से इसका सम्बन्ध है। यह अन्वेषण का विषय है। शासन की अवहेलना का प्रश्न सामयिक है। जीवों की उत्पत्ति न हो तथा उसकी विराधना न हो, इसकी सावधानी बरती जा सकती है। इन हेतुओं से लोंच की साधना अनिवार्य होना कठिन है। यह कष्ट सहिष्णुता की बहुत बड़ी कसौटी है, क्योंकि केशलोंच से दारुण कष्ट होता है। केशों को संसाधित करने से उसमें जूं, लीख आदि उत्पन्न हो जाती हैं। वहां से उनको हटाना दुष्कर होता है । सोते समय अन्यान्य वस्तुओं से संघटन होने के कारण उन जूं, लीखों को पीड़ा हो सकती है। अन्य स्थलों से कीटादिक जन्तु भी उनको वहां खाने आ जाते हैं। यह दुष्प्रतिहार्य है। लोच से मुण्डत्व, मुण्डत्व से निर्विकारता और निर्विकारता से रत्नत्रयी में प्रबल पराक्रम हो सकता है। लोंच से आत्मदमन होता है। सुख में आसक्ति नहीं होती, स्वाधीनता रहती है। लोंच न करने वाला मस्तक को धोने, सुखाने, तेल लगाने में काल व्यतीत करता है। स्वाध्याय आदि में स्वतन्त्र नहीं रहता । निर्दोषता की वृद्धि होती है और शरीर से मन हट जाता है। लोच से धर्म के प्रति श्रद्धा होती है। यह उग्र तप है, कष्ट सहिष्णुता का उत्कृष्ट उदाहरण है। 344 इस प्रकार काय : क्लेश तथा लोंच को जैनों के कठोर आत्मनियन्त्रण का प्रतीक माना जा सकता है। जबकि बौद्ध धर्म इन कठिन काय : कलेशों में विश्वास न कर मध्यम प्रतिपदा को स्वीकार करता है । 345 (3) नग्नता नग्नता भी जैन संघ की विचित्र विशेषता है। यह इस बात की सूचक है कि गम्भीर अपरिग्रह के पालन से भिक्षु समाज पर नाममात्र को ही आश्रित रहता है। आचारांगसूत्र के अनुसार धर्मक्षेत्र में उन्हें नग्न कहा गया है जो दीक्षित होकर पुन: गृहवास में नहीं आते | 346 श्रमण से अपेक्षा की जाती थी कि वह लज्जा को जीतने में समर्थ हो । सर्वथा अचेल रहे । कटिबन्ध तक धारण नहीं करे। चाहे घास की चुभन हो, सर्दी लगती हो, गर्मी लगती हो, डांस और मच्छर काटते हों। सब परीषहों को निर्वस्त्र होकर सहन करे। 347 अचेलमुनि का आदर्श एक जातीय और
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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