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________________ 126 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति छन्दना-अभ्युत्थान मुनि को भिक्षा में जो प्राप्त हो उसके लिए अन्य साधुओं को निमन्त्रित करना चाहिए तथा जो प्राप्त न हो उसे लेने जाये तब अन्य साधुओं से पूछना चाहिए कि "क्या मैं आपके लिए भोजन लाऊं' इन दोनों समाचारियों को छन्दना तथा अभ्युत्थान कहा जाता है। आवश्यक नियुक्ति के अनुसार इसे निमन्त्रण के अर्थ में भी प्रयुक्त करते हैं। इच्छाकार-मिथ्याकार संघीय व्यवस्था में परस्पर सहयोग लिया जाता है, किन्तु वह बल प्रेरित न होकर इच्छा प्रेरित होना चाहिये। बड़ा साधु छोटे साधु से या छोटा साधु बड़े साधु से कोई काम कराना चाहे तो उसे इच्छाकार का प्रयोग करना चाहिए। “यदि आपकी इच्छा हो तो मेरा काम आप करें" ऐसा कहना चाहिए।।94 साधक के द्वारा भूल होना सम्भव है किन्तु अपनी भूल का भान होते ही उसे मिथ्याकार का प्रयोग करना चाहिए।195 जो दुष्कृत को मिथ्या मानकर उससे निवृत्त होता है, उसी का दुष्कृत मिथ्या होता है। तथाकार-उपसम्पदा जो मुनि कल्प और अकल्प को जानता है, महाव्रत में स्थित होता है, उसे तथाकार का प्रयोग करना चाहिए। गुरु जब सूत्र पढ़ायें, सामाचारी आदि का उपदेश दें तब तथाकार का प्रयोग करना चाहिए। आप जो कहते हैं वह सच है। इस प्रकार कहना चाहिए।196 ___प्राचीन काल में अनेक गण थे। व्यवस्था की दृष्टि से एक साधु दूसरे गण में नहीं जा सकता था। आपवादिक विधि के अनुसार तीन कारणों से दूसरे गण में जाना विहित था। दूसरे गण में जाने को उपसम्पदा कहा जाता था।97 ज्ञान की वर्तना पुनरावृत्ति या गुणन, संधान, त्रुटित ज्ञान को पूर्ण करने और नया ज्ञान प्राप्त करने के लिए जो उपसम्पदा स्वीकार की जाती थी उसे ज्ञानार्थ उपसम्पदा कहा जाता था। इसी प्रकार दर्शन विषयक शास्त्रों के ग्रहण के लिए दर्शनार्थ उपसम्पदा स्वीकार की जाती थी।।98 वैयावृत्य और तपस्या की विशिष्ट आराधना के लिए चारित्रार्थ उपसम्पदा की जाती थी।
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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