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________________ 82 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति वेदान्ती कुछ व्यक्ति यह मानते हैं कि प्रकृति यद्यपि जड़ है फिर भी अपने आपको अनेक रूपों में अभिव्यक्त करती है उसी प्रकार आदि तत्व आत्मन अपनी अभिव्यक्ति जगत के रूप में कर लेता है।242 जैन चिन्तक इस मत की आलोचना करते हुए कहते हैं कि यदि जगत एक ही आत्मा की अभिव्यक्ति है तो हम जिन अनेक आत्माओं को देखते हैं वह क्या है? फिर तो एक के कर्मों का फल दूसरे को भोगना होगा। वैष्णव वेदान्त कुछ ऋषियों के अनुसार जगत स्वयंभू से उत्पन्न हुआ है और मार से माया, इसलिए संसार अशाश्वत दिखाई देता है। कुछ कहते हैं कि जगत अण्डे से निकला है और ब्रह्म उसके कर्ता हैं किन्तु जैनों के अनुसार यह विचार असत्य है क्योंकि न तो जगत की उत्पत्ति हुई है न ही वह नष्ट होगा।243 कुछ कहते हैं कि सृष्टि ईश्वर कृत है।244 वैनयिक अथवा विनयवादी यह मतवादी सबकी विनय करने के कारण विनयवादी कहे जाते हैं।245 यह विनयवादी सत्य को असत्य व बुरे व्यक्ति को अच्छा समझते हैं तथा बिना सत्य का प्रत्यक्ष किये ही कहते हैं कि हमने विनय से परमतत्व का साक्षात्कार कर लिया है। जैनों के अनुसार क्रिया, अक्रिया, विनय और अज्ञान-इन चार स्थानों के द्वारा कुछ एकान्तवादी मेयज्ञ अर्थात् तत्ववेत्ता असत्य तत्व की प्ररूपणा करते हैं।246 इन विनयवादियों के अनुसार भक्ति से मोक्ष सम्भव था।247 त्रैराशिक सम्प्रदाय इस मत में दुःख बुरे कर्मों का परिणाम है ऐसा स्वीकार किया जाता है। जिन्हें इनका कारण ज्ञात नहीं वह दुख निरोध का उपाय कैसे जान सकते हैं? त्रैराशिक के अनुसार जो धरती पर संयत श्रमण बनकर रहा-कर्मों से मुक्त हो जायेगा। लेकिन जैसे शुद्ध जल पुन: कलुषित हो जाता है वैसे ही आत्मा भी हो सकती है। जो पवित्र जीवन नहीं जीते हैं वह वितण्डावादी केवल दूसरों के विरोध में अपने मत का प्रचार करते हैं।248
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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