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________________ 78 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति उस प्राणी के आश्रित रहे हुए अनेक जीवों का घात होता है। उस प्राणी के मांस, खून, चर्बी आदि में रहने वाले या पैदा होने वाले अनेक स्थावर और जंगम प्राणियों का घात होता है। इसलिए वर्षभर में जो एक प्राणी की हत्या की बात करते हैं, वह घोर हिंसक हैं, पंचेन्द्रिय वध के कारण नरक के मेहमान बनते हैं। वह अहिंसा की उपासना से कोसों दूर हैं। अनागार आचारांग प्रथम अध्ययन के तृतीय उद्देशक में 'अणगारों' मोति एगे पवयमाणा अर्थात् कुछ लोग कहते हैं कि हम अनागार हैं; ऐसा वाक्य आता है।220 अपने को अनागार कहने वाले ये लोग पृथ्वी आदि का आलंभन अर्थात् हिंसा करते हुए नहीं हिचकिचाते। ये अनागार कौन हैं? इसका स्पष्टीकरण करते हुए चूर्णिकार कहते हैं कि ये अनागार बौद्ध परम्परा के श्रमण हैं। ये लोग ग्राम आदि दान में स्वीकार करते हैं एवं ग्रामदान आदि स्वीकृत कर वहां की भूमि को ठीक करने के लिए हल, कुदाली आदि का प्रयोग करते हैं तथा पृथ्वी में रहने वाले कीट पतंगों का नाश करते हैं। इस प्रकार कुछ अनागार ऐसे हैं जो स्नान आदि द्वारा जल की तथा जल में रहते हुए जीवों की हिंसा करते हैं। स्नान नहीं करने वाले आजीवक तथा अन्य श्रमण स्नानादि वृत्ति के निमित्त पानी की हिंसा नहीं करते किन्तु पीने के लिए तो करते ही हैं। कुछ लोग यह मानते हैं कि हमारे पास देवों का बल है, श्रमणों का बल है।221 ऐसा समझकर वे अनेक हिंसामय आचरण करने से नहीं चूकते। वे ऐसा समझते हैं कि ब्राह्मणों को खिलाएंगे तो परलोक में सुख मिलेगा। इस दृष्टि से वह यज्ञ भी करते हैं। बकरों, भैंसों यहां तक कि मनुष्यों के वध द्वारा चाण्डिकादि देवियों के यज्ञ करते हैं। ब्राह्मणों को दान देंगे तो धन मिलेगा, कीर्ति प्राप्त होगी व धर्म सधेगा, समझकर अनेक आलम्भक-समालम्भन करते रहते हैं।222 इस उल्लेख में भगवान महावीर के समय में धर्म के नाम पर चलने वाली हिंसक प्रवृत्ति का स्पष्ट निर्देश है। इस जगत में कुछ श्रमण23 व ब्राह्मण भिन्न भिन्न रीति से विवाह करते हुए कहते हैं कि हमने देखा है, हमने सुना है, हमने माना है, हमने विशेष तौर से जाना है तथा पूरी सावधानीपूर्वक पता लगाया है कि सर्वप्राण, सर्वभूत, सर्वजीव, सर्वसत्व हनन करने योग्य हैं, सन्ताप पहुंचाने योग्य हैं, उपकृत करने योग्य हैं एवं स्वामित्व करने योग्य हैं। ऐसा करने में कोई दोष नहीं है।224 इस प्रकार कुछ ब्राह्मणों व श्रमणों के मत का निर्देश कर सूत्रकार ने उनका अभिमत बताते हुए कहा है कि यह वचन अनार्यों का है अर्थात् इस प्रकार की हिंसा का समर्थन करना अनार्य मार्ग है। इसे आर्यों ने दुर्वचन कहा है, दुःश्रवण कहा है, दुर्मत कहा है, दुर्विज्ञान कहा है। हिंसा का विधान करने वाले एवं उसे
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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