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________________ नरक के जीवों को क्षण भर भी साता नहीं मिलती। फिर भी नरक में सम्यग्दृष्टि जीव पाये जाते हैं और ऐसे-ऐसे भी सम्यग्दृष्टि पाये जाते हैं जो उम्र भर सम्यग्दृष्टिपन का पालन करते हैं। यह विचारने योग्य बात है कि उस भीषण यातनामय, घोर अशान्त और भयंकर मारकाट से निरन्तर परिपूर्ण नरक में वे जीव किस प्रकार अपने सम्यक्त्व की रक्षा करते हैं। संसार के कई लोग आपस में लड़कर कहते हैं- तेरा सम्यक्त्व यों चला गया, त्यों चला गया। उन्हें यह ज्ञान नहीं है कि सम्यक्त्व श्रद्धान की वस्तु है, वह यों-त्यों कैसे चला जा सकता है? अगर इस प्रकार सम्यक्त्व जाने लगे तो नारकी जीव कैसे सम्यग्दृष्टि रह सकते हैं? . दुःख के अवसर पर धर्म के साक्षात् दर्शन होते हैं। कहावत है-ठोकर खाने पर अक्ल आती है। इस कहावत के अनुसार बहुत से लोगों ने इस बात का पश्चात्ताप किया है कि –'हाय! सत्पुरुषों ने हमें कैसा हितमय उपदेश दिया था। लेकिन मैं कैसा दुर्बुद्धि था कि उस अमृतमय उपदेश को भी मैंने जहर समझा?' नरक के अनेक जीव भी इसी प्रकार पश्चाताप करके सम्यग्दृष्टि बन जाते हैं। आप मनुष्य हैं, साहस रखिए। आपके हाथों में कोई हथकड़ी डाल सकता है लेकिन आत्मा को बन्दी बनाने की शक्ति किसी में नहीं है। कर्म जीवों को नरक में डाल देता है, लेकिन आत्मा तो वहां भी स्वतंत्र ही रहता है। अतएव कष्ट आने पर इस बात का विचार करना चाहिए कि मेरे आत्मा में समस्त शक्तियां विद्यमान हैं। मैं जो चाहूं, कर सकता हूं। मुझे जो कष्ट हो रहा है, वह मेरी ही दुर्बलता का परिणाम है। मेरी अपनी कमजोरी ही दुःखों को उत्पन्न करती है। यह दुःख रोने से कम नहीं होगा, न रोने वाला ईश्वर का हो सकेगा। जो रोता है वह रोता ही रहता है। उसे आनन्द की प्राप्ति नहीं हो सकती। अतएव दुःख के समय रुदन करना योग्य नहीं, परमात्मा का स्मरण करना ही योग्य है। यही दुःखों की अमोघ और अमूल्य औषध है। रोने वाला अनन्त आनन्द स्वरूप परमात्मा के निकट नहीं पहुंच पाता। प्रकृति की विषमता से रोने तो बड़े-बड़े लोग भी लगे, मगर वे तभी तक रोये, जब तक उन्होंने ईश्वर को नहीं पहचाना। रोने का स्वभाव पुरुष की अपेक्षा स्त्रियों मे अधिक होता है। स्त्रियां रोने वालों का दुःख बढ़ाना बहुत जानती हैं। उन्हें दुःख घटाना नहीं आता। जब किसी के घर मृत्यु जैसा प्रसंग उपस्थित होता है, तब स्त्रियां जाती हैं उन्हें धैर्य और सान्त्वना देने, मगर वहां जाकर, स्वयं रोकर उसके घर वालों को रुला कर दुःख बढ़ाती हैं। उचित तो यह है कि रोने वालों को सान्त्वना ६४ श्री जवाहर किरणावली 8888888888888888888888888888888888888888 838888888800000000000000000
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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